Wednesday, December 24, 2025

बिन चैन की रातें"( ग़ज़ल)

बिन चैन की रातें"( ग़ज़ल)

बीते दिनों की यादों में जीते हैं
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

ख़्वाबों की दुनिया में खोते हैं हम
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

वो लम्हें जो साथ थे कभी हमारे
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

तन्हाई के साये में छुपते हैं हम
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

दिल की गहराइयों में बहते हैं आँसू
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

जी आर – हर याद बस तुझसे जुड़ी है
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

जी आर कवियुर 
24 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, December 23, 2025

हर मुलाक़ात का दर्द” ( ग़ज़ल)

हर मुलाक़ात का दर्द” ( ग़ज़ल)

हर मुलाक़ात के बाद बिछड़ने का दर्द होता है,  
हालात जो लाते हैं, तनहाई में दर्द होता है  

छुपा नहीं सकता दिल की आग किसी से भी,  
यादों की चादर ओढ़ के सोता हर कोई, दर्द होता है  

राहें जुदा सही, मगर तन्हाई में वो पास लगता है,  
हर ख़ामोशी बोलती है उन लम्हों की बात, जो दर्द होता है  

हवाओं में घुली है तेरी खुशबू हर तरफ़,  
हर मुस्कान छुपाती है वो आँसू जो अंदर दर्द होता है  

आँखों से उतरकर दिल तक जाती है तेरी याद,  
जो मिला सिर्फ़ ख्वाबों में, हकीकत में हर बार दर्द होता है  

तू मिले या न मिले, यादों का साया हमेशा साथ रहेगा,  
हर शब, हर सुबह, तेरी कमी का अहसास यही है, दर्द होता है


जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)


हवा, फूल, मानव


हवा, फूल, मानव

दिन के नीले आकाश की तरह,  
मानव नई आशाओं के साथ चलता है।  
हवा में बहती नदी के रूप में,  
मन फैलता है, बहता है और छिपता है।  

फूल खिलेंगे और उनकी आँखें मुस्कुराएंगी,  
फिर भी समय के किनारे पर, वे बदल जाएँगी।  
जब बारिश होगी और मिट्टी गहरी हो जाएगी,  
विचारों की छाया हानियों की गिनती करेगी।  

प्रेम चाँदनी की तरह होगा,  
स्थिर नहीं, बदलने की जगह देने वाला।  
पहले यह गीत गाएगा, फिर गायब हो जाएगा,  
भावनाएँ हृदय की धाराओं से बहेंगी।  

हवा और तितलियाँ सेवा देंगी,  
प्रकृति के विचित्र नहीं — बल्कि नियम।  
फिर भी जो नहीं देखता और नहीं सीखता,  
वह मानव स्वार्थ की चादर में ढका है।  

दरवाजा खोलो, और हवा उड़ जाएगी,  
फिर भी पेड़ों की चोटियाँ स्थिर रहेंगी।  
हल्की बारिश में या गहरी मुस्कानों में,  
स्वभाव प्रकृति का प्रतिबिंब बन जाता है।  

नई भोरें हृदय में उगेंगी,  
पुरानी यादें स्मृति में सो जाएँगी।  
जीवन फूलों के दृश्य मार्ग की तरह है,  
जो हम अनुभव करते हैं और जो छोड़ देते हैं,  
लेकिन केवल प्रेम ही शाश्वत रहेगा।


जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)


बीते हुए दिन

बीते हुए दिन

बीता हुआ साल धीरे दस्तक देता है  
पहले सुनी परछाइयाँ साथ ले आता है  
कुछ सपने धुँधले, कुछ रह गए साथ  
कुछ दुआएँ टूटीं, कुछ बनीं सौग़ात  

ख़ामोश दर्द में मुस्काना सीखा  
बारिश में थोड़ा नाचना सीखा  
कुछ अपने छूटे, कुछ पास रहे  
हर विदाई ने सुनना सिखा दिया  

रातें लंबी हुईं, दिल समझदार हुआ  
सच सादा आँखों में छुपता हुआ  
मिटते लम्हों के इस मोड़ पर  
उम्मीद चली आने वाले साल की ओर  

अनकहे इरादे राह तकते खड़े  
खुले बिना ख़त जैसे पास पड़े  
सुबह की रोशनी में हम खड़े हैं आज  
नए साल का स्वागत, शांत हौसलों के साथ

जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“रातों की नमी” (ग़ज़ल)

“रातों की नमी” (ग़ज़ल)

आज भी तेरी अंगड़ाई की याद सताती हैं रातें
होठों की नमी ख्वाबों में खो जाती हैं रातें

तेरी हँसी की खनक अब भी गूँजती
सन्नाटों में भी तेरा गीत बज जाती हैं रातें

चाँदनी भी शरमा जाती
तारों की महफ़िल भी बुझ जाती हैं रातें

हर धड़कन में तेरा नाम उतर आता
हर साँस में तेरा जादू समेट आता हैं रातें

दिल की तन्हाई में तेरी परछाई बसती
हर याद ताज़ा हो जाती हैं रातें

जी आर की दुनिया में तेरी याद रहती
हर खुशी और ग़म में तेरी परछाई रहती हैं रातें

जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

हर मुलाक़ात का दर्द” ( ग़ज़ल)

हर मुलाक़ात का दर्द” ( ग़ज़ल)

हर मुलाक़ात के बाद बिछड़ने का दर्द होता है,  
हालात जो लाते हैं, तनहाई में दर्द होता है  

छुपा नहीं सकता दिल की आग किसी से भी,  
यादों की चादर ओढ़ के सोता हर कोई, दर्द होता है  

राहें जुदा सही, मगर तन्हाई में वो पास लगता है,  
हर ख़ामोशी बोलती है उन लम्हों की बात, जो दर्द होता है  

हवाओं में घुली है तेरी खुशबू हर तरफ़,  
हर मुस्कान छुपाती है वो आँसू जो अंदर दर्द होता है  

आँखों से उतरकर दिल तक जाती है तेरी याद,  
जो मिला सिर्फ़ ख्वाबों में, हकीकत में हर बार दर्द होता है  

तू मिले या न मिले, यादों का साया हमेशा साथ रहेगा,  
हर शब, हर सुबह, तेरी कमी का अहसास यही है, दर्द होता है


जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, December 22, 2025

पर्दों के परे बसे प्रेम(वेदांत / सूफ़ी गीत)


पर्दों के परे बसे प्रेम
(वेदांत / सूफ़ी गीत)

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

छू न सकने वाली दूरी छोड़कर  
एक हृदय यात्रा जारी है  
फासले वहीं हैं  
प्रेम की साँसें फैल रही हैं  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

आँखों में न भरने वाला प्रेम  
नदी जैसी बहती खुशबू  
अनुपस्थिति का सच भी  
मीठा सुख बन गया  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

समीप नहीं लगने वाले लम्हे  
भीतर तक पास महसूस होते हैं  
विरह की अनुभूति  
साक्ष्य बनकर प्रकट होती है  
मृदुलता की आभा में  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

दुःख की पुकार नहीं है  
यादों में  
मधुरता की रौशनी है  
इंतजार में  
एक दिव्य नृत्य जागता है  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

मिलने की आवश्यकता नहीं  
जारी रहने का विश्वास पर्याप्त है  
अनंत रूप में बहता प्रेम  
समय को पार करता हुआ  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन

जी आर कवियुर 
22 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

पर्दों के परे बसे प्रेम(वेदांत / सूफ़ी गीत)


पर्दों के परे बसे प्रेम
(वेदांत / सूफ़ी गीत)

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

छू न सकने वाली दूरी छोड़कर  
एक हृदय यात्रा जारी है  
फासले वहीं हैं  
प्रेम की साँसें फैल रही हैं  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

आँखों में न भरने वाला प्रेम  
नदी जैसी बहती खुशबू  
अनुपस्थिति का सच भी  
मीठा सुख बन गया  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

समीप नहीं लगने वाले लम्हे  
भीतर तक पास महसूस होते हैं  
विरह की अनुभूति  
साक्ष्य बनकर प्रकट होती है  
मृदुलता की आभा में  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

दुःख की पुकार नहीं है  
यादों में  
मधुरता की रौशनी है  
इंतजार में  
एक दिव्य नृत्य जागता है  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

मिलने की आवश्यकता नहीं  
जारी रहने का विश्वास पर्याप्त है  
अनंत रूप में बहता प्रेम  
समय को पार करता हुआ  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन

जी आर कवियुर 
22 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Sunday, December 21, 2025

जताती हैं। ( ग़ज़ल)

जताती हैं। ( ग़ज़ल)

तेरी यादें मेरे साथ जीती हैं,
दिन-रात मुझे सताती हैं।

ख़ामोश लम्हों में तेरा ही ज़िक्र रहा,
तन्हा सी साँसें तुझसे ही बातें करती हैं।

नज़रें भले ही सामने कुछ कह न सकीं,
आँखों की नमी सब कुछ जताती हैं।

तेरे बिना जो कटे वो भी क्या उम्र हुई,
हर एक घड़ी तेरा ही नाम पुकारती हैं।

भुलाने की कोशिश में और करीब आ गए,
यादें भी जाने कैसी साज़िश रचाती हैं।

जी आर हर हाल में तेरे नाम की ग़ज़लें ही लिखता रहा,
तेरी यादें ही हैं जो आज भी उसे ज़िंदा रखती हैं।

जी आर कवियुर 
21 12 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

Saturday, December 20, 2025

आज में जीओ"


"आज में जीओ"

आज की धूप में छुपा सुख है,
कल की चिंता में क्यों बंधक दुख है।
हर पल में नयी खुशियाँ मिलतीं,
बीते लम्हों की यादें बस हलचल करतीं।

मन की आवाज़ को सुनो ध्यान से,
छोटी-छोटी खुशियाँ बाँटें जीवन के रंग से।
हर फूल की खुशबू में छुपा आनंद है,
हर नदी की धारा में जीवन का संदेश है।

सांसों में मौज, दिल में गीत,
हर क्षण जी लो, यही है प्रीत।
भविष्य की चिंता छोड़ो,
आज में रहो, जीवन हो रोशन।

हर कदम में बस आनंद छुपा,
आज का पल है सबसे शुभा।
मन में उमंग, आँखों में चमक,
हर दिन जीते रहो बिना किसी डर के।


जी आर कवियुर 
19 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)



रूह की राह (सूफी ग़ज़ल)

रूह की राह (सूफी ग़ज़ल)

रूह की गली में तू ही बसता है, तेरा नाम
हर धड़कन में बस तेरी ही आवाज़ है, तेरा नाम

छुप-छुप के रातों में तेरी याद आई
आंखों की नमी में तेरा ही असर छाई, तेरा नाम

हर मोड़ पर तेरा दीदार चाहा
हर सांस में तेरा प्यार पाया, तेरा नाम

धूप-छाँव में तेरी राह ढूँढी मैंने
अंधेरी रातों में तेरा नूर देखा मैंने, तेरा नाम

पलकों के साये में तेरा ही चेहरा
सपनों की दुनिया में तेरा ही बसेरा, तेरा नाम

तेरी मोहब्बत में खुद को खो दिया
तेरे बिना हर खुशी अधूरी पाई, तेरा नाम

संग तेरे बीते हर लम्हा खास बना
तेरी यादों में ही हर दर्द को सहा, तेरा नाम

जी आर रूह की राह में तेरे ही नाम लिखा
मैं वही कवि हूँ जो बस तेरा नाम लिया, तेरा नाम

जी आर कवियुर 
20 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

ज़िंदगी की कहानी (ग़ज़ल)

ज़िंदगी की कहानी (ग़ज़ल)

जरा रात हो या दिन का उजाला हो
ज़िंदगी की कहानी में तू ही अनमोल हो

तेरी बातों में जो ठहराव का रस घोल हो
मेरे हर सवाल का तू ही जवाब अनमोल हो

थक कर भी जो मुस्कान लबों पर टोल हो
वो तेरा नाम ही मेरी राहत का मोल हो

भीड़ में भी जो लगे कोई अपना-सा गोल हो
मेरे हर तन्हा लम्हे में तेरा ही रोल अनमोल हो

ख़ामोशी में भी जो एहसासों का बोल हो
मेरे हर टूटे ख़्वाब की ताबीर तू अनमोल हो

“जी आर” कहे, शायरी तभी मुकम्मल हो
जब हर दुआ, हर साँस में तेरा ही बोल अनमोल हो


जी आर कवियुर 
19 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Thursday, December 18, 2025

लफ़्ज़ कम लगता है (ग़ज़ल)

लफ़्ज़ कम लगता है (ग़ज़ल)


तेरी गजरा मुझे ग़ज़ल से भी बेहतर लगता है
तारीफ़ जितनी भी करूँ, लफ़्ज़ कम लगता है

तेरे होंठों की मुस्कान में बसी हर सदा
हर नज़र में तेरा असर कम लगता है

तेरी खामोशी भी बातों से आगे बढ़ जाती है
हर फिक्र में तेरा नाम कम लगता है

तेरी यादों की खुशबू इस दिल को भाती है
हर गीत में तेरा रंग कम लगता है

ख़ुदा ने जैसे तुझे सिर्फ़ मेरे लिए रचा हो
हर दुआ में तेरी मौजूदगी कम लगती है

जी आर कहते हैं, तेरे हुस्न की आगे
मकता भी लिखने को जी नहीं लगता है

जी आर कवियुर 
18 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

कम लगती है (ग़ज़ल)

कम लगती है (ग़ज़ल)


तेरा ज़िक्र करके मुझे कितनी सुकून मिलती है
तेरी तारीफ़ जितनी भी करूँ, फिर भी कम लगती है

तेरी मुस्कान में छुपा है कोई जादू ऐसा
एक नज़र जो मिले तो हर शिकायत मिटती है

ख़ुदा ने जैसे तुझे सिर्फ़ मेरे लिए रचा हो
तेरे होने से ही हर दुआ मुकम्मल लगती है

तेरे लफ़्ज़ों की नरमी छू जाती है दिल को
खामोशी भी तेरे संग बातों में ढलती है

तेरे साथ बीते लम्हे यादों में चमकते हैं
तन्हाई की रात भी तब रौशन सी लगती है

जी आर कहते हैं, यही इश्क़ की सच्ची पहचान
नाम तेरा आए जहाँ, रूह मेरी खिलती है

जी आर कवियुर 
18 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, December 17, 2025

वर्षांत दीपक

वर्षांत दीपक

समय की आँख में प्रकाश चमकता है
पुरानी यादें हृदय में भर जाती हैं
नए वर्ष की आशा बुलाती है
दीपक मार्ग को रोशन करते हैं

हवा द्वारा लाई मिठास
संगीत हृदय में गूँजता है
खुशी और प्रेम एक उत्सव बनाते हैं
पुराने पाप मिटते हैं, नई शुरुआत होती है

नई प्रतिज्ञाएँ आत्मा में बिखरती हैं
दीपक की चमक अंदर उठती है
वर्षांत दीपक विश्वास को बढ़ाता है
नए वर्ष में खुशी फैलती है, आनंद आता है

जी आर कवियुर 
17 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

वीर गाथाएँ

वीर गाथाएँ

समय के पथ बहादुरों को बुलाते हैं
हार के बावजूद उनका प्रकाश चमकता है
नायक मानव प्रयासों में फैलते हैं
महान आत्माओं की कथाएँ दोहराई जाती हैं

साहस की लय जोर से गाती है
स्मृतियों का विशाल सागर बहता है
प्रिय देश के लिए जीवन त्यागा जाता है
जड़ जैसी शक्ति अंतहीन बढ़ती है

युद्धभूमि में प्रेम गूँजता है
साहस का रोमांच हृदय में भरता है
वीर गाथाएँ प्रेरणा और उत्साह देती हैं
कल की आशा कभी नहीं जाती

जी आर कवियुर 
17 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

संगीत संध्या

संगीत संध्या

सुरों में मन की मुकुट सजता है
हवा में ठंडक धुन लेकर आती है
पंखों वाले पल सुनाई देते हैं
गायक का हृदय विशाल सागर खोलता है

मौन रात संगीत से भर जाती है
फूलों की खुशबू ताल में मिल जाती है
प्रेम के गीत आत्मा से बात करते हैं
स्मृति की परछाइयाँ ताल में गाती हैं

स्वर उठते हैं और वातावरण उत्सव बनता है
प्रेम का नशा गाया जाता है
रात के रंग संगीत की तरह होते हैं
हृदय एक संध्या गीत गाता है

जी आर कवियुर 
17 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)


दूर की आश्वासन


दूर की आश्वासन

चाँद की मुस्कान जैसे बर्फ की रात
हृदय में गहरा विश्वास खिलता है
दूर की आश्वासन दृढ़ और उज्ज्वल खड़ा है
आशाएँ मुरझाए रस्सियों जैसी, कभी न टूटतीं

दूर गए मित्रों के लिए प्रेम
स्मृति के पथ पर स्नेह फैलता है
ठंडी हवा में भी आत्मा मुस्कुराती है
विश्वास के साथ यात्री आगे बढ़ते हैं

संकट में भी साहस पाया जाता है
आँसुओं में भी एक छुपा आनंद चमकता है
दूर जाने वाले शब्द हृदय में रहते हैं
आश्वासन का प्रकाश हमेशा प्रकट होता है

जी आर कवियुर 
17 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)


Tuesday, December 16, 2025

तेरी याद में जीते हैं”(ग़ज़ल)

“तेरी याद में जीते हैं”(ग़ज़ल)

अभी भी तेरी याद में हम जीते हैं
बीते कल की तरह आज भी जीते हैं

अभी भी तेरी याद में हम जीते हैं
बीते कल की तरह आज भी जीते हैं

रातों की तन्हाई में तेरे ख्याल बसे
चाँदनी में तेरी याद के साए जीते हैं

हँसी-हँसी में छुपा लिया दर्द हमनें
लबों की मुस्कान में ग़म छुपाए जीते हैं

फूलों की खुशबू में तेरी बातें मिलीं
साँसों की खुशबू में तेरी याद लिए जीते हैं

हवा के झोंके से तेरे संदेश आते हैं
हर पल तेरे नाम के गीत गुनगुनाए जीते हैं

तेरे बिना ये जिंदगी अधूरी सी लगे, जी आर
मगर तेरी यादों के साये में हर पल जीते हैं

 जी आर कवियुर 
16 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

चुप रहने में ही (ग़ज़ल)

चुप रहने में ही (ग़ज़ल)

ख़ामख़ां आवाज़ करने में नहीं है चैन है
ख़ामोशियों में ही मन को चैन है

भीड़ में रहते हुए भी मन खाली है
मौन में बैठने पर मन को चैन है

बहुत कहकर भी कुछ बदल न सका
चुप रहने में ही अब मन को चैन है

जिन शब्दों ने मन को घायल किया
उनसे दूरी में ही मन को चैन है

दुनिया की चाहत थका देती है
कम चाहने में ही जीवन को चैन है

जी आर कहता है सीधी भाषा में
संतोष में ही इंसान को चैन है

जी आर कवियुर 
16 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

कर्तव्य

कर्तव्य 

आज के साथ जिएँ…
मौन में मन को बहने दें,
क्षण कविता की तरह खुलते हैं, बिना भूल,
किसने कल देखा है? नियति का खेल अज्ञात है…

समय के घोड़े को कौन रोक सकता है?
जिसके साथ इसकी लय में चलते हैं, उनके लिए सफलता निश्चित है,
अपने हृदय में जो है उसे जानो,
प्रकृति की विकृतियों को समझे बिना, दो पैरों वाला घमंड से चलता है…

कविता के बीज अनजाने में बोए जाते हैं,
प्रयास की कोई सीमा नहीं, बिना शिकायत के,
जागता दिन रात की रोशनी में छिपा है,
मौन विचारों में शांति और सुख फैलाता है…

कवि ऋषि समान हो,
प्रकृति और मानवता के प्रति सजग,
कविता के माध्यम से आशा और प्रेम फैलाएँ,
सच्चे विचार और अच्छे कार्य करें;
यह सृष्टि की सबसे बड़ी जिम्मेदारी और कर्तव्य है…


जी आर कवियुर 
15 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)


दूर से मिला आश्वासन

दूर से मिला आश्वासन


मौन में तेरे अनकहे शब्द सुनाई देते हैं,
परमात्मा की उपस्थिति में हृदय को छूते हैं,
दृष्टि से दूर होकर भी आत्मा को आश्रय मिलता है,
विश्वास और ईश्वर की शांत करुणा बहती रहती है…

स्मृतियों में तुझे खोजता हूँ,
आँसुओं से रहित मुस्कान उभर आती है,
आशा का प्रकाश अंधकार को हराता है,
दूर से मिला आश्वासन हृदय को सशक्त करता है…

अनजान अंतरालों में प्रेम अपना अर्थ बताता है,
ईश्वर की करुणा की छाया में मन को सांत्वना मिलती है,
यादों की कोमल ऊष्मा में विश्राम मिलता है,
दूरी फुसफुसाए भी, मन शांत बना रहता है…

देखे बिना भी प्रेम का आशीर्वाद मिलता है,
ईश्वर की निश्चितता में विश्वास गूँजता है,
सीमाएँ बाधा नहीं, बल्कि मौन वरदान हैं,
दूर से मिला आश्वासन जीवन को आगे बुलाता है…

जी आर कवियुर 
15 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

चाँदनी का जादू

चाँदनी का जादू 

ठंडी हवा धीरे-धीरे चली
धरती की खुशबू चारों ओर फैली
पत्तों की आँखे थककर झुक गईं
चाँदनी की कोमल रोशनी ने 
सितारों को अदृश्य कर दिया

हरे-भरे पहाड़ शांति से चमक रहे थे
तितलियाँ चारों ओर मंडरा रही थीं
रात की मधुर हवा धीरे-धीरे आई
कोमल पंख फड़फड़ाते हुए उड़ गए

यादें छायादार राह पर साथ चल रही थीं
छायाएँ धीरे-धीरे उनके साथ चल रही थीं
कोयल का मधुर गीत सुनाई दिया
स्नेह का छोटा सा स्पर्श प्रकाश दे गया

जी आर कवियुर 
15 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

सूर्यकिरण

सूर्यकिरण 

सूर्यकिरण धीरे-धीरे धरती को चूमते हैं
हरी कलियाँ उठती हैं, बिना आँसुओं के मुस्कुराती हैं
दूर तक फैले क्षितिज ने सुबह की रोशनी लायी
रेत में गर्मी फैलती है, कोमल आनंद की छाया में

दिन की तपिश हृदय को जगा देती है
वृक्ष अपने कंधे फैलाकर सीधे खड़े हैं
खेत हर्षित मुस्कानों से झूमते हैं
नदी हृदय की धड़कन को पूरा करते हुए बहती है

दूर-दूर तक के दृश्य सुख देते हैं
मिट्टी की छूअन ठंडी हवा में ठंडक देती है
प्रकृति का संगीत एक दिव्य अनुभव रचता है
सूर्यकिरण में जीवन नई सुबह की तरह चमकता है

जी आर कवियुर 
15 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)


भिगी बारिश

भिगी बारिश 

भिगी बारिश ने धीरे-धीरे धरती को चूमा
हरे पत्ते झकझक कर जाग उठे
अंधेरा आकाश कोमलता से टूट गया
बूँदें ऊपर से साँसों की तरह गिर रही थीं

शाम में चाय की गर्माहट धीरे-धीरे घुल गई
सड़क के किनारे की लैंप टिमटिमाई
बारिश में भीगी यादें हृदय को खोजती रहीं
एकांत बिना किसी आवाज़ के दूर हो गया

खिड़की पर बूँदों की ताल लगी
समय धीरे-धीरे ठहर गया
बारिश के साथ मन भी घुल गया
शांति एक मौन प्रार्थना की तरह फैल गई

जी आर कवियुर 
15 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)


विरह गीत

विरह गीत

ख़ामोश राहों में दिल की धड़कन तेज़ होती है
यादों की बारिश आँसुओं की नदी बनाती है
इंतज़ार की साँस रात को छू जाती है
दूरी समय के भीतर घाव बन जाती है

तेरी परछाईं सपनों की सीढ़ियाँ चढ़ती है
दीये की लौ उम्मीद को संभालकर रखती है
ख़ामोशी सीने में संगीत जगा देती है
दूर का चाँद चित्ताकाश को सहलाता है

विरह की ख़ुशबू साँसों में भर जाती है
कल का विश्वास राह को उजाला देता है
फिसलते लम्हों को गिनता रहता हूँ
फिर मिलन जीवन-गीत बनकर गूंज उठता है

जी आर कवियुर 
15 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

तेरे बिना (ग़ज़ल)


तेरे बिना (ग़ज़ल)

इस ग़ज़ल में, प्रियतम के बिना बिताए गए उन तन्हा लम्हों और अधूरी यादों की बात है।
प्रेमिका / जीवनसाथिनी की अनुपस्थिति हर पल महसूस होती है।
हर स्मृति, हर मुस्कान, हर धड़कन बस उनके बिना अधूरी रह गई है।
यह ग़ज़ल उसी विरह और खोए हुए प्यार की गहरी अनुभूति बयां करती है।


तेरे बिना (ग़ज़ल)

कैसे गुजरी रातें तेरे बिना, कैसे बीते दिन तेरे बिना,
हर एक याद में तेरा अक्स दिखा, हर एक लम्हा तेरे बिना (2)

वो बारिश की वो बूंदें, वो खिड़की का कोना,
तेरी हँसी की गूँज आज भी सुनाई देती है तेरे बिना (2)

छोटी-छोटी बातें, वो मीठी बातें,
दिल में बसी हर याद आज भी तड़पती है तेरे बिना (2)

बीते कल की गलियाँ, वो चुपके से कहे वादे,
हर मोड़ पर तेरा नाम लबों पे आता है तेरे बिना (2)

अब तो खाली हैं ये कमरे, सब कुछ फीका लगता है,
जी आर की मोहब्बत में खो गया हर रंग तेरे बिना (2)

वो चाँदनी रातें, वो पुरानी बातें,
तन्हा दिल अब भी तुझे ढूँढता है तेरे बिना (2)

हर संगीत की सरगम, हर धड़कन की आवाज़,
सुनाई देती है सिर्फ तेरी याद तेरे बिना (2)

जी आर की तन्हाई में बसी, ये मोहब्बत तेरे बिना,
हर धड़कन में तू ही तू, खो गया हूँ मैं तेरे बिना (2)


जी आर कवियुर 
14 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)


Sunday, December 14, 2025

हृदय का स्वप्न

हृदय का स्वप्न 

खुले मन की रात में जन्मी एक छवि
हर साँस के साथ चलने वाला सपना
आँखों में उतरता मौन संगीत
चाँदनी जैसा छू लेने वाला कोमल स्पर्श

यादों की ठंडक में पलती चाह
असीम दूरियों की ओर बुलाती रोशनी
बिना पीड़ा का सुकून भरा क्षण
समय से परे ठहरी हुई आशा

निस्तब्धता तोड़कर उठता विचार
हृदय की धड़कन में घुली लय
अनकहे ही मुस्कान दे जाने वाली मौजूदगी
जीवन की साँझ में बची हुई उजास

जी आर कवियुर 
14 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Saturday, December 13, 2025

जुदाई की ग़ज़ल

जुदाई की ग़ज़ल

क्या कहूँ, जुदाई अब बरदाश्त नहीं हो सकता
ख़्वाबों में भी तेरे बिना कोई सहारा नहीं सकता (2)

तेरी यादों का हर पल दिल में बहता रहता है
तेरे बिना मेरा कोई सफ़र पूरा नहीं सकता (2)

रात की चुप्प में तेरा नाम लबों पर आता है
तेरे बिना ये मौसम भी हँस नहीं सकता (2)

हर हवा में तेरी खुशबू महसूस होती है
तेरे बिना ये जहाँ मेरा अपना नहीं हो सकता (2)

दिल की हर धड़कन में तेरा असर है
तेरे बिना मैं खुद को जी नहीं सकता (2)

तेरी आँखों की चमक में मेरा जहाँ बसता है
तेरे बिना हर ख़ुशी अधूरी रह जाती है (2)

जी आर की तन्हाई में भी तू हमेशा साथ है
तेरे बिना मेरी ग़ज़ल का कोई मतलब नहीं सकता (2)

जी आर कवियुर 
13 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

पत्थर पर ख़ामोशी

पत्थर पर ख़ामोशी

चट्टान पर
सोई हुई
ख़ामोशी

सूरज की छाया
छुई
आँखें

हवा की लहरें
धीरे
साँस लेती

नीचे
घास की छाया
ठंडक

समय
बहे बिना
ठहरा

स्मृति
कोमल
परत

दूर कहीं
लहरें
टूटतीं

अंदर
पीड़ा
ठहरती

रात्रि पक्षी
उड़कर
गया

बादलों की कतार
हटी
तारे

स्वप्न
मौन में
खुलते

शांति
वहीं
रहती

जी आर कवियुर 
13 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

“किसी मोड़ पर”(ग़ज़ल)

“किसी मोड़ पर”(ग़ज़ल)

किसी मोड़ पर मिलते तुझको हमसे,
आज भी तुम मुख मोड़ कर चले हमसे। (2)

यादों की राह में खोले फसाने हमसे,
तन्हाई ने पुकारा तुम्हें हमसे। (2)

हर ख्वाब में बस देखा चेहरा हमसे,
चाँदनी रात में गूँजे बातें हमसे। (2)

हवा भी लाए खुशबू तुम्हारी हमसे,
कदमों की आहट सुनी सदा हमसे। (2)

पर मिल न पाए तू जुदा हमसे,
रात के सन्नाटे में रोता रहा हमसे। (2)

यादों के साये में खोया रहा हमसे,
दिल की गहराई में छुपा है नाम हमसे। (2)

जी आर कहता है, ये अल्फाज़ तेरे लिए हमसे,
हर धड़कन में बसा है तेरा नाम हमसे। (2)

जी आर कवियुर 
13 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

“तेरा मेरा रिश्ता" (ग़ज़ल)

“तेरा मेरा रिश्ता" (ग़ज़ल)

तेरा मेरा रिश्ता है सूई-धागे जैसा
तू न हो साथ अगर, मैं अधूरा जैसा (2)

तन्हाई में भी तेरा ही ख्याल आता है
हर खुशी में तेरी याद गूंजा जैसा (2)

दिल के हर कोने में तू ही बसा है
तेरे बिना ये जीवन सुना-सा जैसा (2)

चाँदनी रातों में तेरा नाम लेता हूँ
तेरे बिना हर सपना अधूरा-सा जैसा (2)

हर घड़ी तेरी यादें साथ निभाती हैं
तेरे बिना हर सफ़र वीराना-सा जैसा (2)

जी आर की दास्तान है तेरे प्यार की
तेरे बिना दिल मेरा वीराना-सा जैसा (2)

जी आर कवियुर 
12 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

सर्दियों की गर्माहट”

सर्दियों की गर्माहट”

नी रे गा मा पा धा नि सां… (soft, slow alaap)

बाहर नौ डिग्री की ठंड, हवाओं में चुभन,
अंदर पच्चीस डिग्री की गर्माहट का अपनापन।

चाय की प्याली हाथों में, भापों का गीत,
धड़कनों में गूँजते हैं सर्दी के प्रीत।

खिड़की के पार बर्फ की सफेद चादर,
भीतर घुलती है गर्म चाय की मधुर बहार।

कंबल में लिपटे, आँखों में नींद की छाया,
बाहर की ठंड और अंदर की रौशनी का माया।

हर घूँट में प्रेम और शांति का स्वाद,
सर्द हवा के बीच में यह छोटी राहत।

समय थम सा गया, पल बना अनमोल,
बाहर का तुषार, अंदर का धूल-धूल शोल।

गर्म चाय, सर्दी, और ये नर्माहट,
जीवन की छोटी-छोटी खुशियों की बात।


जी आर कवियुर 
12 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

ख्वाब और ख्वाइश” (ग़ज़ल)

ख्वाब और ख्वाइश” (ग़ज़ल)

नी रे गा मा पा धा नि सां… (soft, slow alaap)

ख्वाब जितने भी अधूरे रह गए,
ख्वाइश बनकर अधूरे रह गए (2)

कुछ पल जो तेरे नाम कर दिए,
कुछ ख्वाहिशें अब भी अधूरे रह गए (2)

वो रातें जो चुपचाप बीत गईं,
तेरी यादों में कहीं खोए रह गए (2)

दिल की किताब में कई पन्ने खाली,
कुछ जज़्बात तो सिर्फ अधूरे रह गए (2)

आसमान की उन ऊँचाइयों में,
हमारे अरमान बस अधूरे रह गए (2)

हर जज़्बात तेरी हँसी में बसा,
हमारी मोहब्बत भी अधूरे रह गए (2)

जी आर कह रहे हैं, यह दास्ताँ अधूरी,
तेरे बिना ये जीवन अधूरे रह गए (2)

जी आर कवियुर 
12 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अकेले विचार – 128


अकेले विचार – 128

समय मुस्कुराया और बोला, मैंने पूछा
मेरा दोष क्या था
तुमने सभी को अपना समझा
यही वह अपराध था जो तुमने किया (2)

दिल में दर्द एक गीत बन गया
यादों की राहों से होकर गुज़रा
वो कहानियाँ जो पल कह न सके
मन में बस गईं, जैसे छाँव (2)

उन रास्तों पर जहाँ तुम पीछे नहीं मुड़े
साँगठन रूप में मौजूदगी है
प्यार, दर्द और सुकून मिलकर
दिल में बह गए, एक ही बार में (2)

जीवन के लंबे रास्ते पर
आशीर्वाद मिलेंगे
मन में निस्तब्ध शांति
अंतिम शब्द में, समय मुस्कुराया और बोला (2)


जी आर कवियुर 
13 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Friday, December 12, 2025

घर की यादों की खुशबू

घर की यादों की खुशबू


घर की सजीव खुशबू चारों ओर फैल गई,
फूलों की नर्म छुअन मन में समा गई।
कोनों की शांति हृदय को शीतल करती है,
हवा में बहता गीत यादों को दूर ले जाता है।

चाय के प्याले की गर्मी हाथों में ठंडी पड़ गई,
भोजन की खुशबू नाक पर मुस्कान ला देती है।
पहाड़ों पर इंद्रधनुष के रंग बिखर गए,
माँ का प्यार धीरे-धीरे बारिश की तरह बहता है।

संध्या का समय दरवाज़े खोलकर प्रकाश फैलाता है,
परछाइयाँ घर में चुपचाप चलती हैं।
यादों की लय मन में उठती है,
यहाँ की सारी खुशियाँ हृदय को भर देती हैं।


जी आर कवियुर 
11 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Thursday, December 11, 2025

बोलाते हैं (ग़ज़ल)

बोलाते हैं (ग़ज़ल)

उन आंखों से कुछ कहते हैं,
मगर जुबां उन्हें नहीं बोलाते हैं (2)

दिल की तन्हाई में तूफां उठते हैं,
कुछ ख्वाब आंखों से ही बोलाते हैं (2)

रात की चुप्प में छुपा हर दर्द,
सितारे उसकी दास्तां बोलाते हैं (2)

वो मुस्कुराए तो बहारें खिल उठें,
पर लब्स अपनी बात नहीं बोलाते हैं (2)

यादों की परतें गिरती रहतीं हैं,
हर ख्याल अपनी बात बोलाते हैं (2)

जी आर कहते हैं कि मोहब्बत में,
दिल की हर राह हमसे बोलाते हैं (2)

जी आर कवियुर 
10 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

कविता एक औषधि

कविता एक औषधि

कविता हृदय के लिए एक होम की तरह, हर स्वर जगाता है
यादें पंख फैलाकर सपनों को छूती हैं (2)

दुःख की छायाएँ ध्वनि में बहती हैं
मौन का संगीत हृदय को झंकृत करता है (2)

अकेलापन और विरह, पंक्तियों में स्पर्श करते हैं
आशा की नई ज्वालाएँ पंक्तियों में जन्म लेती हैं (2)

यादों की धारा में बहती राहें
शब्दों में मिश्रित हृदय गीत जीवन को देता है (2)

प्रेम, आनंद, दुःख — सब एक साथ
ध्वनि की लय में यह सांत्वना है, विश्वास है, जीवन है, वायु है, आत्मा का अंश है, सतत साथी है (2)

दुःख भरे क्षणों में भी
यह हृदय गीत औषधि बनकर हृदय को जगाता है (2)

जी आर कवियुर 
10 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तेरी यादें का ताल (ग़ज़ल)

तेरी यादें का ताल (ग़ज़ल)

तेरी यादों का चाँद मेरे दिल में ही चमकता रहता है
रात की ख़ामोशी में भी तेरा नाम ही धड़कता रहता है (2)

क़दम जहाँ भी चलते हैं, तेरी आहट कुछ तो कहता है
हवा भी तेरे परदेसी ग़म को चुपके से ही बहता है (2)

तेरे जाने का ज़ख़्म अभी तक दिल में क्यों ना सहता है
तेरी हर तस्वीर मेरे सपनों पर अपना रंग ही रहता है (2)

दिल की सूनी गलियों में एक साया तुझसा कहता है
“प्यार कभी नहीं मरता”— बस वक़्त ही आगे रहता है (2)

तेरी मद्धम यादें अब भी ख़ुशबू बनकर बहता है
जैसे बाग़ में चुपके से कोई फुल नया खिलकर रहता है (2)

जी आर की हर शायरी में तेरा ही अफ़साना रहता है
क़लम उठे तो हर लफ़्ज़ में तेरा नाम ही रहता है (2)

जी आर कवियुर 
10 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

प्रभात के सपने

प्रभात के सपने

सूर्य की किरणें धीरे-धीरे फूलों को छूती हैं
हवा की आवाज़ में गीत खुशी से बुलाते हैं
ठंडी सुबह में हृदय नए सपनों की खोज करता है
नदी शांत होकर प्रकाश फैलाती है और आकाश तक पहुँचती है

छुपे हुए काले बादल नीले आसमान को सजाते हैं
पक्षियों का पहला संगीत पूरा जंगल भर देता है
नए दिन की गर्मी में रेत की लहरें चमकती हैं
मार्ग फूलों की खुशबू में अनुभव की खोज करते हैं

रंगों से भरे पेड़ शांति प्रदान करते हैं
ठंडी सूर्य की किरणें धरती पर चमकती हैं
स्मृतियाँ नए जीवन की लय में नाचती हैं
सुबह की शांति में सपने जन्म लेते हैं

जी आर कवियुर 
10 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

वीणानाद

वीणानाद

वीणा की तंतुओं से हृदय की धड़कन उठती है
निर्जन रात में सपने आँसुओं की तरह बहते हैं
मछली जैसे विचार ठंडी हवा में उछलते हैं
नीचे की छज्जों में छुपे शब्‍द धीरे-धीरे गायब होते हैं

मृदुल संगीत धरती पर फैलता और फैलता है
अंगुली के सुरों के बीच पेड़ कराहते और रोते हैं
पक्षियों की आवाज़ शांति खोजते हुए डूब जाती है
नदी बहती रहती है, प्रेम के हृदय तक पहुँचती है

स्मृतियाँ चित्रों की तरह चमकती हैं, ताल पर नाचती हैं
बारिश के आगमन में अंगारे और गर्मी की चमक झिलमिलाती है
अंतिम सुर में हृदय पूरी तरह से संगीत को आत्मसात करता है
सब कुछ शांत धरती में छुपा है, संगीत प्रेम में बहता है

जी आर कवियुर 
10 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अग्निवृष्टि

अग्निवृष्टि

धधकती हवा में अग्निकण ऊपर उठते जाते हैं
फटे बादलों से लाल चिंगारियाँ धरती पर गिरती हैं
धुआँ फैलकर भूमि को काली चादर में ढक देता है
निर्जन राहों पर दबे पाँव बढ़ता हुआ भय फुसफुसाता है

पेड़ टूटकर अंतिम पीड़ा में काँपते बिखरते हैं
पक्षियों के सपने अंगारों में पिघलते जाते हैं
नदी शांत धारा में राख की लकीरें बहाती है
तपा हुआ रेत हर कदम पर चुभन छोड़ जाता है

चट्टानें फटकर अग्निकण चारों ओर उछालती हैं
गाँव अँधेरे में डूबकर मौन विलाप करता है
आँखों में बुझती चिंगारियों-सी नमी चमक उठती है
सर्व-सहाय धरती माँ सब कुछ सहकर शांति खोजती है

जी आर कवियुर 
10 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

अंगारों में (ग़ज़ल)

अंगारों में (ग़ज़ल)

अंगारों में जलते रहके भी
तेरी यादों में खोए रहके भी (2)

चाँदनी में तेरा नाम लेके भी
रात भर तेरी बात सोच के रहके भी (2)

दूरियों में दिल को बहलाते रहके भी
तुम्हारी खुशबू में खोए रहके भी (2)

अधूरी बातें मुस्कान में छुपाकर
तेरे ख्यालों में बहे रहके भी (2)

धड़कनों को तेरे इंतजार में गिनकर
सपनों में तुझसे मिले रहके भी (2)

तन्हाई में तेरा हाथ पकड़कर
आँखों में आंसू पोंछते रहके भी (2)

जी आर लिखते हैं इश्क़ की दास्तान
दिल में तेरी याद लिए रहके भी (2)

जी आर कवियुर 
09 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, December 9, 2025

सब अधूरा रह गया। (ग़ज़ल)

सब अधूरा रह गया। (ग़ज़ल)

तेरे लिए लिखने बैठा— हर लफ़्ज़ अधूरा रह गया,
दिल का हाल कहने निकला— मैं ख़ुद ही मजबूरा रह गया। (2)

तेरी यादों के दरियामें कोई किनारा न मिला,
लिखने बैठा हर जज़्बात— पर दिल बेचारा रह गया। (2)

कभी स्याही रूठ गई, कभी क़लम थम-सी गई,
इक तेरा नाम लिखते ही काग़ज़ बेक़सूरा रह गया। (2)

सोचा था तेरी बातों को नए अंदाज़ में ढालूँ,
पर हर मिसरा तेरे ख़यालों में बेहदूरा रह गया। (2)

शायद तू समझ न पाए मेरी कोशिशों की सच्चाई,
तेरे लिए जो लिखना था— वो सब दूरी-दूरा रह गया। (2)

कहते हैं जी आर भी तेरे इश्क़ में ऐसा खो गया,
जो कहना था उम्रभर— सब अधूरा रह गया। (2)


जी आर कवियुर 
09 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

नमकीन क्यों है (ग़ज़ल)

नमकीन क्यों है (ग़ज़ल)

सागर की लहरों में नमकीन क्यों है
आँखों के आँसुओं में नमकीन क्यों है (2)

राहों में बिछे फूल भी चुभने लगे हैं
ये दर्द की खुशबू भी नमकीन क्यों है (2)

पत्थर भी पिघलते हैं तेरे ज़िक्र से लेकिन
मेरे दिल की वीरानी नमकीन क्यों है (2)

चाँदनी रातों में भी तन्हाई बोल उठे
हर ख़्वाब की पेशानी नमकीन क्यों है (2)

रुसवाई की आदत तो बहुत पहले पड़ी थी
फिर भी हर बेगानी नमकीन क्यों है (2)

जी.आर. ये मानते हैं कि सच्चाई की तलाश में
ज़िंदगी मिटा कर रख दे—इसलिए सब नमकीन है (2)

जी आर कवियुर 
08 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

ग़रूरत नहीं (ग़ज़ल)

ग़रूरत नहीं (ग़ज़ल)

तुमको हमसे मोहब्बत हो तो कोई ज़रूरत नहीं
तुम्हें चाहत न हो हमसे, फिर भी कोई ज़रूरत नहीं (2)

दिल की दुनिया में तेरी याद का उजाला काफी है
हमको तेरी रौशनी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं (2)

रात भर तेरे ही किस्से हवा बयाँ करती रही
ख़्वाब को तेरी दस्तक देने की कोई ज़रूरत नहीं (2)

तू जो चाहे तो नज़रों से भी सब कुछ कह सकता है
लफ़्ज़ों को बीच में आने की कोई ज़रूरत नहीं (2)

तेरी महफ़िल में मेरा ज़िक्र जहाँ भी आ जाए
हमको नाम से पुकारने की कोई ज़रूरत नहीं (2)

जी.आर. को तो बस तेरी रहमत का एहसास काफी है
उसे दुनिया की किसी शोहरत की कोई ज़रूरत नहीं (2)

जी आर कवियुर 
09 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

प्रेम की दूरी

प्रेम की दूरी


दूर क्षणों में, मेरी आँखें तुझे ढूंढती रहीं
छायाएँ छुपी, रहस्यों में रुकी रहीं
खुला हुआ दिल, सपनों की तरह खिल उठा
संध्या की हवा में, एक याद झिलमिल उठा

मन के रास्तों में, पीड़ा धीरे बह गई
पंखों रहित आशाएँ उड़ चलीं, मौन में छा गईं
खामोशी में कानों में एक सदा जल उठी
काल के किनारे, यादें खो गईं

संध्या की रोशनी में, प्रेम फैल गया
आँखों में दिल का गीत गूंज गया
हर कोने में तेरा स्वर खोजा गया
अंतहीन दूरी, जहाँ सिर्फ प्रेम रहता है

जी आर कवियुर 
09 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

अब तुम्हारे रहे (ग़ज़ल)

अब तुम्हारे रहे (ग़ज़ल)

किसके भी उतने रहो, जीतना वो तुम्हारे रहे
इश्क़ में लम्हों का क़दर, हर घड़ी अब तुम्हारे रहे (2)

रात की तन्हाइयों में, जो भी दीपक तुम्हारे जले
कल वही यादों में बनकर, चुपके चुपके तुम्हारे रहे (2)

क़दमों की आहट से भी, रिश्तों की सूरत बदलती है
सच को पकड़ना सीखो, झूठ क्यों कर तुम्हारे रहे (2)

दर्द की छाया में अक्सर, हौसले भी थम जाते हैं
दिल संभालोगे तो क्या, दुख नज़र से तुम्हारे रहे (2)

जुर्मे-मोहब्बत में कोई, बेगुनाह नहीं ठहरता
जिसको भी चाह कर जीते, क़िस्मतें वो तुम्हारे रहे (2)

तुम नहीं चाहोगे कल, पछतावे की वो आग जले
सच अभी से बोल दो, चाहतें जो तुम्हारे रहे (2)

जी॰आर॰ कहता है बस, दिल की तिजारत न कीजिए
वरना जो सपने थे प्यारे, न कल को तुम्हारे रहे (2)

जी आर कवियुर 
09 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

पाया गया है। (ग़ज़ल)

पाया गया है। (ग़ज़ल)

तेरे प्यार ने मुझे सताया गया है,
रात की नींद भी तूने चुराया गया है। (2)

इक नज़्म की तरह ढल गई तेरी बातें,
दिल पे लिखकर भी वो मिटा न पाया गया है। (2)

तेरी यादों का जहाँ मैंने बसा रखा,
हर इक मोड़ पे तेरा नूर सजा पाया गया है। (2)

तेरे बिना ये दिल वीरान सा हो गया,
हर ख़्वाब मेरा अधूरा रह गया गया है। (2)

तन्हाई में भी तेरा नाम लबों पे आया,
हर आह मेरी तेरी ओर ही बढ़ गया गया है। (2)

तेरी हँसी का असर मेरे दिल पे ऐसा,
हर दर्द भी अब मुझसे दूर हो गया गया है। (2)

कहते हैं जी आर को भी मोहब्बत ने बदल दिया,
अब वो भी तेरे नाम से ख़ुद को पहचानता गया है। (2)


जी आर कवियुर 
08 12 2025
(कनाडा ,टोरंटो)


रात भी ढल गई (ग़ज़ल)

रात भी ढल गई (ग़ज़ल)

ये रात भी ढल गई,
तेरी बातों की नमी रह गई।2)

चाँदनी भी थम गई,
तेरी यादों की छवि रह गई।(2)

सन्नाटों में गूँज गई,
तेरे नाम की तन्हाई रह गई।2)

दिल की हर धड़कन में,
तेरे ख्यालों की कमी रह गई।(2)

सफर भी अधूरा रह गया,
तेरी हँसी की गर्मी रह गई।(2)

ख्वाबों में ढूँढा मैंने,
तेरी सूरत की रश्मी रह गई।(2)

जी आर की दुआ में,
तेरी मोहब्बत की रवानी रह गई।(2)

जी आर कवियुर 
08 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)


Sunday, December 7, 2025

तेरी यादों का सफ़र ( गीत)


तेरी यादों का सफ़र ( गीत)

पहचानी सी तेरी एक झलक को देखने की चाह में
पलों की खिड़की से यादें फिर खुल जाती हैं
धीमे से उठे वो कहने की हसरतें
होंठों पर आकर सुर बन जाती हैं

पहले तो दिल में दबी थीं, जलती रहीं ख़ामोशी में
फिर धड़कन की लय में पिघलकर बह निकलीं
उँगलियों की थिरकन में ढलकर
गाने का रूप हथेलियों पर उतर आईं

कितने सपने अनकहे ही उड़ गए
आधी रात की हवा में बिखरते हुए
तेरी मुस्कान की हल्की सी चमक
दिन की धूप में भी दिल को छू जाती है

ओस की बूंदों में पलती ये पीर
बीते दिनों की धुन बनती जाती है
तुम पंछी बनकर दूर उड़ भी जाओ
पर राहों पर तुम्हारे कदमों की गूँज रहती है

मुस्कुराहटों के वो चंद लम्हे
नदी-सी बहकर फिर लौट आते हैं
जन्म बदल जाए, पर प्यार न मिटेगा
अगले जनम में भी तुम मेरे संग चलो
यही दुआ है—दिल आज भी सुर छेड़ता रहता है…

जी आर कवियुर 
07 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

ड्रैगनफ्लाई की बूँदें

ड्रैगनफ्लाई की बूँदें 



ड्रैगनफ्लाई की बूँदें आकाश में नाचतीं
सूरज फैलाए सुनहरी रोशनी साथ में
हवाएँ अपनी उंगलियों से कहानियाँ बुनतीं
नदी अपने राज़ समुंदर से कहती

धारा की आँखों में चमकती छोटी-छोटी रौशनियाँ
फूल बारिश में महकते, ठंडी हवा में
छुपे दिल जागते दिन की रोशनी में
सपने उड़ते हैं पंखों में अदृश्य

सूरज की रौशनी में ठहरता नृत्य
धरती की गर्मी बाँधती प्यार से
तारें जागते हैं शांत रात में
ड्रैगनफ्लाई की दुनिया आराम करती संध्या में


जी आर कवियुर 
06 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

भौल गीत – एकतारा

भौल गीत – एकतारा

ओ रे ओ… एकतारा की तान सुनो, दिल में बसी ये बात,
धरती, जल, अग्नि, वायु, आकाश, इसमें रची सौगात। ओ रे ओ…(2)

सादा सा ये बाजा, पर गूँजता है प्यार का गीत,
मन की गहराइयों से उठे, हर स्वर है अमृतरीत। तां तां तां…(2)

गाँव की गलियों में गूँजे, साधु की प्यारी धुन,
साधना, भक्ति, और प्रेम में, बंधा हर एक जुन। ओ रे ओ…(2)

हाथ में थामो इसे, बजाओ नर्म आलाप,
जीवन के पाँच तत्त्वों में बसी इसकी मधुर आवाज़। तां तां तां…(2)

हर धुन में छुपा है ब्रह्मांड का संदेश,
एकतारा बोले चुपके-चुपके, प्रेम और हृदय का वेश। ओ रे ओ…(2)

संगीत में समाई धरती, पानी, अग्नि, हवा और आकाश,
भौल गीत में गाओ इसे, मिले सुकून और प्रकाश। तां तां तां…(2)


जी आर कवियुर 
06 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

दिल की राहों में (प्रेम गीत)

दिल की राहों में (प्रेम गीत)

“ओ… ओ… ओ…
अ… आ… आ…
ओ… ओ… ओ…”

तेरे साये जब बिखरते हैं मुझमें
रंगहीन दुनिया के पार भी
ऐसा लगता है जैसे मैं खड़ा हूँ
सारे जज़्बात उठकर दिल की तान पे बह रहे हैं

तू जब अपनी निगाहें मेरे पास लाती है
अनकहे शब्द संगीत बन जाते हैं
साँसों की गर्मी जब मिलती है
खाली पलों में भी फूल खिल जाते हैं

जब तू सपनों में खिलती है
दिल के रास्तों में छाया छोड़ती है
चाहे कितनी भी दूरी हो, तेरी तलाश में
मेरा मन बार-बार तुझे बुलाता है

जी आर कवियुर 
07 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

झलक” (प्रेम गीत)

झलक” (प्रेम गीत)

ओ… ओ… ओ… ओ…
ओ… ओ… ओ… ओ…
आ… आ… आ… आ…
ओ… ओ… ओ… ओ…

इक राह पे ठहरा था मैं,
इक टूटी-सी दिल की धड़कन लिए,
इक झपक भी न दी मैंने,
इक और झलक तेरी पाने को।

इक दिन तो आएगा,
इक मुस्कान तेरी फूल बन खिल जाएगी,
इक-इक अंदाज़ तेरे,
इक पल में ही दिल को भिगो जाएँगे।

इक-इक पत्ता गिरता जाए,
इक मीठी धुन संग दिल भी गाए,
इक-इक चाहत तेरी दिल को छू जाए,
इक हवा भी तेरी याद बढ़ाए।

इक-इक गीत दिल में खिलता जाए,
इक कदम तेरे आते ही मौसम बहार बन जाए,
इक अंधेरे में तेरी प्यार की रौशनी चमके,
इक रात भी तेरे कारण उजली हो जाए।

जी आर कवियुर 
07 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“हूँ…”

“हूँ…”

हूँ…
बिन बोले कह देने वाली आवाज,
जिसे सिर्फ दिल ही समझ पाता है।

हूँ…
हँसी और दर्द को साथ लेकर
मन के भीतर धीमे से उठती धुन।

हूँ…
जब शब्द रास्ता खो देते हैं,
खामोशी की राह पर चमकता चाँद बनती है।

हूँ…
ज़िंदगी थक जाए तब भी
आत्मा को आगे बढ़ने का एक संकेत देती है।

जी आर कवियुर 
07 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

न झुके हम (ग़ज़ल)

न झुके हम (ग़ज़ल)

क्यों डरे इस दुनिया से हम
सच्चा प्यार जो किया है हम (2)

छुपा नहीं सकते दिल की आग
हर एक पल में तेरा ही नाम हम(2)

रातों की तन्हाई में भी साथ है
सपनों में भी ढूँढते तुझको हम(2)

दिल की गहराई में बसाए हैं
जुलुम तो नहीं किया है हम(2)

हर आँसू में तेरा ही अक्स दिखता
हर खुशी में बस तेरा ही राज है हम(2)

हर सुबह में तेरी यादें बसी
हर शाम में बस तेरी आवाज है हम(2)

लिखता है जी आर मनसे तेरे लिए
दुनिया कितना भी कहे, न झुके हम(2)

जी आर कवियुर 
07 12 2025
(कनाडा ,टोरंटो)

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“नज़रअंदाज़ हुए दिल”

“नज़रअंदाज़ हुए दिल”


दूसरों की गलतियाँ ही देखने वाली नज़रें
पास खड़े दिलों को भूल जाती हैं
मिलता प्यार समझे बिना गुजरती हैं
कोमल आत्माएँ अनसुनी रह जाती हैं

ताना उड़ते ही ममता धुंधली पड़ती है
सहारा देने वाले भी गिने नहीं जाते
निर्णय मन को अपने बस में करते हैं
संदेह आने वाले कल को ढक देता है

सच के साथ चलने वाले थक जाते हैं
मुस्कान देने वाले भी खो से लगते हैं
मदद करने वाले बोझ समझे जाते हैं
आखिरकार मन खालीपन में गिर जाता है


जी आर कवियुर 
07 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

तेरी यादों का सफ़र ( गीत)

तेरी यादों का सफ़र ( गीत)

पहचानी सी तेरी एक झलक को देखने की चाह में
पलों की खिड़की से यादें फिर खुल जाती हैं
धीमे से उठे वो कहने की हसरतें
होंठों पर आकर सुर बन जाती हैं

पहले तो दिल में दबी थीं, जलती रहीं ख़ामोशी में
फिर धड़कन की लय में पिघलकर बह निकलीं
उँगलियों की थिरकन में ढलकर
गाने का रूप हथेलियों पर उतर आईं

कितने सपने अनकहे ही उड़ गए
आधी रात की हवा में बिखरते हुए
तेरी मुस्कान की हल्की सी चमक
दिन की धूप में भी दिल को छू जाती है

ओस की बूंदों में पलती ये पीर
बीते दिनों की धुन बनती जाती है
तुम पंछी बनकर दूर उड़ भी जाओ
पर राहों पर तुम्हारे कदमों की गूँज रहती है

मुस्कुराहटों के वो चंद लम्हे
नदी-सी बहकर फिर लौट आते हैं
जन्म बदल जाए, पर प्यार न मिटेगा
अगले जनम में भी तुम मेरे संग चलो
यही दुआ है—दिल आज भी सुर छेड़ता रहता है…

जी आर कवियुर 
07 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

ड्रैगनफ्लाई की बूँदें

ड्रैगनफ्लाई की बूँदें 



ड्रैगनफ्लाई की बूँदें आकाश में नाचतीं
सूरज फैलाए सुनहरी रोशनी साथ में
हवाएँ अपनी उंगलियों से कहानियाँ बुनतीं
नदी अपने राज़ समुंदर से कहती

धारा की आँखों में चमकती छोटी-छोटी रौशनियाँ
फूल बारिश में महकते, ठंडी हवा में
छुपे दिल जागते दिन की रोशनी में
सपने उड़ते हैं पंखों में अदृश्य

सूरज की रौशनी में ठहरता नृत्य
धरती की गर्मी बाँधती प्यार से
तारें जागते हैं शांत रात में
ड्रैगनफ्लाई की दुनिया आराम करती संध्या में


जी आर कवियुर 
06 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Saturday, December 6, 2025

तेरी मौजूदगी (ग़ज़ल)

तेरी मौजूदगी (ग़ज़ल)

तेरी ख़ामोशी मुझको बेहद बेचैन करती है,
तेरी आँखों की चमक भी बेचैन करती है।

तेरी सूरत मेरी तसवीर में ख़्वाब बुनती है,
दूर रहकर भी तू मुझको बेचैन करती है।

पंछी भी गाते हैं मगर दिल को सुकून नहीं,
बसंत की हवा तक मुझको बेचैन करती है।

फूल सारे शाख़ों से गिरकर बिखर गए,
बस तेरी याद ही मुझको बेचैन करती है।

लब अगर चुप रहें, क्या दिल भी छुप सकता है?
तेरी मौजूदगी हर पल बेचैन करती है।

मेरी ग़ज़लें भी तेरी आवाज़ को ढूँढें सनम,
"जी आर" को हर धुन अब बेचैन करती है।

जी आर कवियूर
16 - 03 -2025

इश्कि

तुझको मेरे इश्किकी चादरमे छुप्पालुमे
आखोंके काजलमे बरलो मुझे युही
तेरी रेशमी जुल्फों के महक मुझे
दीवाना बनादिया तूने
क्या जादू है तुझमे बतादे जरा
तेरी ऑटोकि नमी से लिखी
नगमे मेरे दिलमे उत्तर गयी
लम्हा लम्हा उसे याद करके
जीता हुं इस तन्हाई में और इसे
गाकर सुनानेकी अदा मुझमे नहीं हैii

शिक्षक दिवस

शिक्षक दिवस 

शिक्षक हमारे मार्गदर्शक होते हैं,  
ज्ञान की ज्योति जगाते हैं।  
हर सवाल का जवाब देते,  
सपनों को सच बनाते हैं।  

पुस्तकों से जो सिखाते हैं,  
जीवन की राह दिखाते हैं।  
सच्चाई और मेहनत की बात,  
हर दिल में वो जगाते हैं।  

उनकी मेहनत का फल मीठा,  
हर छात्र का सपना पूरा करते।  
शिक्षक दिवस पर हम सब मिलकर,  
उनका दिल से धन्यवाद करते।  

जी आर कवियूर
05 09 2024

भुलाने की कोशिशें

भुलाने की कोशिशें

मेरी किस्मत की लकीरों पे लिखा है,  
तेरे बिना जीने का अब क्या सिला है।

तेरे साथ बिताए पल अब हैं यादों में,  
हर खुशी की राहों में बस तेरा ही सिला है।

आँखों में आंसू, दिल में दर्द छुपा है,  
तेरे बिना हर लम्हा अब अधूरा सा है।

खुशियों की दुनिया अब वीरान सी लगती,  
तेरे बिना ये दिल बस एक सिला है।

तेरे नाम से हर सांस में ग़म बसा है,  
किस्मत ने मुझसे तेरा चेहरा छीन लिया है।

भुलाने की कोशिशें सब बेकार हैं,  
हर ख्वाब में तेरा ही साया छा गया है।

जी आर कवियूर
28 09 2024


दिल में तुम्हारा नाम लिखा है।

अजनबी बनकर रहते हो  
तमन्नाओं की भीड़ में  
तुम्हारी यादों के साए  
छुपे हैं हर एक दीवार में।  

खामोशियों की बातें हैं  
दिल के जज़्बातों की लहर में।  
तन्हाई का ये आलम है  
जैसे कोई खो गया हो सफर में।  

तेरे बिना ये शाम सुनी है  
हर रंग फीका सा लगता है।  
तेरी हंसी की गूंज सुनूं  
तो हर दर्द भी भुला देता है।  

तुमसे मिलकर जो एहसास हुआ  
वो पल अब तक यादों में बसा है।  
अजनबी बनकर रहते हो तुम,  
पर दिल में तुम्हारा नाम लिखा है।

जी आर कवियूर
19 09 2024

जीवन की राहों में

जीवन की राहों में

जीवन की राहों में मुश्किलें खड़ी हों,
हर कदम पर नई-नई मुसीबतें बढ़ी हों।
डर से न रुकना, न हार मानना,
अपने सपनों को सदा पहचानना।

अंधेरों में भी रोशनी जलानी पड़ेगी,
हर ठोकर से नई राह बनानी पड़ेगी।
जो मेहनत से आगे बढ़ते हैं सदा,
उनका ही होता है हर मंजिल पर जलवा।

हौसले को अपना साथी बना लो,
हर डर को दिल से भगा लो।
हर हार को भी जीत में बदल दो,
सपनों को पूरा करने की कसम लो।


जी आर कवियूर
20 -12-2024 

अकेले विचार – 78

 अकेले विचार – 78


युद्ध क्यों?


आज रात खामोशी में एक पालना खाली पड़ा है,

धुँधली होती रोशनी में एक माँ उदास होकर रो रही है।

जो आसमान कभी नीला था, अब आग का रंग है,

शांति के सपने कीचड़ में छिपे हैं।


मासूम आँखें, कृपा के क्षितिज को देखती हुई,

एक बच्चे की उम्मीद बिना किसी निशान के खो गई है।

जो खेत कभी सोने से लदे थे, अब धूल बन गए हैं,

अविश्वास से छोड़ा गया घर खंडहर में पड़ा है।


नेता बोलते हैं - लेकिन दिल चुप हैं,

दुश्मनी और दर्द की कीमत हमेशा ऊँची होती है।

जब झंडे फहराते हैं, तो ज़िंदगियाँ ठंडी ज़मीन पर गिरती हैं -

यह दुनिया फिर भी दुःख क्यों चुनती है?


जी आर 

कवियुर 

२४ ०६ २०२५


राह में (ग़ज़ल)

राह में (ग़ज़ल)

आते जाते ज़िंदगी की राह में,
ज़िंदा दिलों का नाम है राह में(2)

हर कदम पर मिला हमें कोई पैग़ाम है राह में,
कभी ग़म, कभी मुस्कान का इम्तिहान है राह में(2)

दिल के अरमान लुटे मगर ये ग़ुमाँ रहा,
कहीं न कहीं तो इनायत का सलाम है राह में(2)

सफ़र की धूल में भी चमकते हैं कुछ निशाँ,
शायद किसी का छोड़ा हुआ इनाम है राह में(2)

जो ढूँढता रहा प्यार को सच्चे एहसास से,
वो जान ले कि यही असल मुक़ाम है राह में(2)

‘जी आर’ अब हर सफ़र में मिलता है सुकून,
तेरा ख़याल ही मेरा पयाम है राह में(2)

जी आर कवियुर 
22 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

चंद्रवर्ष

चंद्रवर्ष 

आँखों में झिलमिल करती मौन छाया
अनवरत बहती रात की धुन
चाँदनी की ठंडक में खिलते सपने
हल्की बयार बरसाती कोमल हँसी

बिन धूप की राह में जगती उम्मीद
परछाइयाँ पथ पर लिखती मुस्कान
बादल हटकर संवारें नीला गगन
निशब्दता गुनगुनाए उजास का गीत

यादों की धार छूकर जाती मन को
खुलती पत्तियाँ कहती अनसुनी बातें
राह में चमके भोर की ओस बूँदें
चंद्रवर्षा दे दिल को शांति की फुहारें

जी आर कवियुर 
06 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

बरसता है (ग़ज़ल)

बरसता है (ग़ज़ल)

नि रे गा मा प ध नि सा’
सा’ नि ध प मा गा रे सा

मौन की परछाइयाँ भी दिल को छू बरसता है
चाँदनी में भीगा हर सपना रूबरू बरसता है (2)

रात की धुनों में छुपी कुछ अनसुनी कहानियाँ
किसी ख़्वाब का फिर से जागना यूँ ही क्यूँ बरसता है(2)

थरथराती हवा में तेरी मुस्कान की गर्मी
छू ले जैसे रूह को, हर लम्हा यूँ बरसता है(2)

बिन धूप की राहों में तेरी यादों की रोशनियाँ
तन्हा सफ़र में मेरी हर कदम पे क्यूँ बरसता है(2)

बादलों के हटते ही खुलता नीला आसमान
तेरी आँखों का सुकून मेरे अंदर ही बरसता है(2)

भोर की ओस-बूँदे भी क्या कम मोहब्बत हैं
एक-एक क़तरा जैसे नाम तेरा ही बरसता है(2)

दिल की दुनिया में "जी आर" भी चुप रहकर मुस्काए
जब भी तेरा एहसास गहराई से यूँ बरसता है(2)

जी आर कवियुर 
06 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

मौन कहता है

मौन कहता है

शब्दों में छुपे अर्थ उभरते हैं,
पलकें लिखती संदेश, पढ़ने वाला नहीं।

हृदय की आवाज़ हवा में मिलती है,
स्मृतियाँ छवि बनकर मन में बहती हैं।

निःशब्दता में छुपे शब्द,
स्मृति के फूल की तरह मन में खिलते हैं।

ठंडी रात की हल्की रोशनी में,
स्मरण की कोमल छुअन आत्मा को छूती है।

शांति बहती है, समय से अनजान,
प्रेम की गहराई के संकेत दिखाती है।

मौन कहता है, जब दिल सुन नहीं पाते,
जीवन के गहन सत्य को प्रकट करता है।

जी आर कवियुर 
06 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)


ओ मेरे यार ओ दिलरुबा (romantic song)

ओ मेरे यार ओ दिलरुबा (repeat)
ओ मेरे यार ओ दिलरुबा

ओ एंटे कूट्टुकारी ओ प्रणयिनी (Malayalam) (repeat)
ओ एन नांपे ओ एन कथाली (Tamil) (repeat)
ओ नन्ना स्नेहीता ओ नन्ना प्रेमिके (Kannada) (repeat)
ओ ना स्नेहिता ओ ना प्रिया (Telugu) (repeat)
ओ आमार स्नेही ओ आमार प्रेमिका (Bengali) (repeat)
ओ मारा यार ओ मारी प्रेयसी (Punjabi) (repeat)
ओ माजा मित्रा ओ माजी प्रियंका (Marathi) (repeat)
ओ मारा सखा ओ मारी प्रिया (Odia / Oriya) (repeat)
ओ मोर सखा ओ मोर प्रिया (Assamese) (repeat)

हर दिल में तेरा नाम, हर सांस में तेरा एहसास (slightly melodic)

Hindi Emotional Conclusion:
तुम बिन मैं जी न सकूँ, तुम बिन मैं रह न सकूँ (fade-out)

Optional soft chorus/fade-out:
ओ मेरे यार ओ दिलरुबा (soft echo, fade)

GR kaviyoor 
जी आर कवियुर 
05 12 2025
(Canada Toronto)

वही मिठास (ग़ज़ल)

नैनों में निखार है, बातों में बसी मिठास,
देखा जो तुझे, दिल में उतर गई वही मिठास (2)

तेरी मुस्कान छू ले तो दिल में खिले उजास,
हर धड़कन कहे तेरा नाम लिए मिठास(2)

तेरी राहों में चलते ही दिल को मिले विश्वास,
कदम-कदम पे तेरी दुआ बहाए मिठास(2)

रातों में तेरी यादें रखें दिल को खास,
चाँदनी भी तेरे रंग में घुल जाए मिठास(2)

थककर भी तेरा चेहरा दे देता है उच्छ्वास,
हर सांस में तेरा असर जगाए मिठास(2)

‘जी आर’ ने तेरी रूह में पाया अनंत प्रकाश,
उसके हर लफ़्ज़ में बस तेरा ही रंग—मिठास (2)

जी आर कवियुर 
05 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

जन्म–जन्मांतरों का सफ़र (सूफी ग़ज़ल)

जन्म–जन्मांतरों का सफ़र (सूफी ग़ज़ल)

अक्षरों में देखा, अपने सामने वरदान ईश्वर का,
हर मोड़ पर मिला साधु साया का।

तन्हा नहीं कोई इस राह में,
नदी भी सहारा बनती है आँसुओं का।

जंजीरें नहीं रोक पाईं इस दिल को,
मिल जाए दर्शन तुम्हारे प्रकाश का।

नाव ने किनारे देखे बहुत बार,
सुकून मिला बस तुम्हारी यादों का।

हर सुबह खुलती नई उम्मीदें नजरों का,
सपनों में बिखरे खुशियों के झरनों का।

‘जी आर’ ने खोजा ईश्वर को हर साँस में,
मकसद यही है जन्म–जन्मांतरों का।

जी आर कवियुर 
05 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)


मुसाफिर हूं (सूफियाना ग़ज़ल)

मुसाफिर हूं (सूफियाना ग़ज़ल)

मुसाफ़िर हूँ मैं जन्म–जन्मांतरों का,
आसान है सफर ईश्वर के रिश्तों का।

आँखों में है धुआँ प्रार्थनाओं की लौ का,
हर मोड़ पर मिला साधु का साया।

तन्हा नहीं कोई इस प्रेम की राह में,
नदी भी सहारा बनती है आँसुओं का।

नाव ने किनारे देखे बहुत बार,
सुकून मिला बस तुम्हारी यादों का।

जंजीरें नहीं रोक पाईं इस दिल को,
मिल जाए दर्शन तुम्हारे प्रकाश का।

‘जी आर’ ने खोजा ईश्वर को हर साँस में,
मकसद यही है जन्म–जन्मांतरों का।

जी आर कवियुर 
04 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Thursday, December 4, 2025

दोष मढ़ना

दोष मढ़ना

जहाँ शब्द मुड़कर बहते हैं,
निर्दोष दबता है, कंधों पर बोझ के साथ।

जो संदेह बोते और उपहास फैलाते हैं,
सच को ढक देते हैं छल की परत में।

जब आँखें नम होती हैं, दोष बदल जाते हैं,
जिम्मेदारी गायब हो जाती है, समस्याएँ बढ़ती हैं।
स्वार्थ से बने झूठे निर्णय।

छाया की तरह आता अन्याय,
थका हुआ मन पूछता है वही सवाल—
क्या दोष मढ़ना न्याय को हराता है?

जी आर कवियुर 
04 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

कम लगे (ग़ज़ल)

कम लगे (ग़ज़ल)

कितनी भी तारीफ़ करूँ,कम लगे
किस्मत से जो पाया तुझे, कम लगे

हर नज़र में तेरा ही अक्स दिखाई दे,
हर ख्वाब में बस तेरा ही सुरूर दिखाई दे, कम लगे

तेरी यादों के दीप ने हर मोड़ रोशन किया,
तेरे बिना ये दिल सूना सा राहों में खो गया, कम लगे

चाँदनी रात में भी तेरा ही नाम गुनगुनाया,
तेरी हर हँसी ने मेरे दिल को भिगोया, कम लगे

लबों पे तेरा जिक्र हर पल सजता रहा,
तेरे बिना मेरी तन्हाई ने गीत लिखा, कम लगे

हर सांस में तेरा एहसास बसता रहा,
तेरे होने का सुख, फिर भी कम लगता रहा, कम लगे

तेरी यादों में जी रहा हूँ मैं,
जी आर के नाम से अब ये दास्ताँ सजाई जाए, कम लगे

जी आर कवियुर 
04 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, December 3, 2025

छोलों वाली शाम, दोस्ती वाला स्वाद (कविता)

छोलों वाली शाम, दोस्ती वाला स्वाद (कविता)

भूमिका 

आज एक पारिवारिक दोस्त के घर डिनर पर पहुँचा तो बड़े प्यार से गरम-गरम छोले परोसे गए। बातों-ही-बातों में मज़ाक शुरू हुआ—"हम हैं बोले तो खाते हैं छोले!"
फिर सोच आया कि इस स्वाद, इस दोस्ती और इस मीठी मेहमाननवाज़ी पर एक छोटी-सी मज़ेदार कविता ही लिख डालूँ।
डायबिटीज़ हो, कैलोरीज़ हों या डाइट चार्ट—दोस्ती के सामने सब हार जाते हैं!
उसी पल में जन्मी यह हल्की-फुल्की शरारती कविता…

छोलों वाली शाम, दोस्ती वाला स्वाद (कविता)

हम हैं बोले तो खाते हैं छोले,
न चाहें तो भी खाएँ गरम-गरम लड्डू के गोले।

डायबिटीज़ भी कहे—“रुक जाओ”—पर हम बोले,
तेरी दोस्ती में यार, मीठे भी झट से घोले।

गलियों में फिरते गुनगुनाते हम खोले,
मज़े से चाट चटोरी दिल में झोले-झोले।

पूड़ी के संग हलवा हो तो मन डोले,
कचौरी देख दिल बोले—बस दे दो दो ले!

भटूरे आए तो कदम पल में ही तोले,
खुशियों के किस्से हर कौर में हम घोले।

ज़िंदगी का स्वाद ऐसे ही हम घोले,
आख़िर में हस्ताक्षर—आपका अपना जी आर।

जी आर कवियुर 
०३ १२ २०२५
(कनाडा , टोरंटो)

Tuesday, December 2, 2025

“ईश्वर के हाथों से”

“ईश्वर के हाथों से”

एक स्वप्निल पंख पर मैं ऊँचाई पर उड़ता हूँ
पत्तों की सरसराहट सुनकर मन प्रफुल्लित होता है
सुबह की सुनहरी बूँदों से भरे रास्तों पर
बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ रहस्यमय दुनिया बन जाती हैं

ठंडी, फुसफुसाती हवा में सपने खिलते हैं
चाँदनी झील को छूती है, चमकती हुई
जलपतंग अपने पंख फड़फड़ाते, ताल में नाचते हैं
वे छोटे पक्षियों का दर्द एक साथ छिपाते हैं

सुनहरी संध्या में, सूरज की रौशनी धीरे-धीरे ढलती है
रातें शाम की खुशबू पर थिरकती हैं
इस दुनिया की हर सुंदरता हृदय को भर देती है
यह सारी भव्यता भगवान के हाथों से खिलती है


जी आर कवियुर 
02 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

गूंज ही गूंज है (ग़ज़ल)

गूंज ही गूंज है (ग़ज़ल)

दिल की ये धड़कन में तेरी गूंज ही गूंज है
हर साँस की राहों में तेरी गूंज ही गूंज है

रातों के सन्नाटे में तेरी याद का जादू
ख़ामोश लम्हों में भी तेरी गूंज ही गूंज है

तू दूर सही पर मेरे अहसास में मौजूद
हर मोड़ पे मंज़िल में तेरी गूंज ही गूंज है

माहौल बदल जाता है तेरे नाम के ज़िक्र से
जैसे किसी महफ़िल में तेरी गूंज ही गूंज है

दिल तो बड़े सलीके से संभाला था मैंने
पर टूटे हुए हिस्सों में तेरी गूंज ही गूंज है

जी.आर. ने लिखी जो भी ग़ज़ल तेरे असर में
हर शेर की रग-रग में तेरी गूंज ही गूंज है”

जी आर कवियुर 
02 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

तेरी रोग (रोग)

तेरी रोग (रोग)

लगा मुझे इश्क़ का हल्का रोग
लोग कहते हैं इसे दिल का रोग (2)

हर नजर में तेरा ही अक्स दिखता रोग
हर ख्वाब में बस तेरा ही सुरूर रहता रोग(2)

तेरे बिना ये दिल जैसे सूना सफ़र रोग
तेरी यादों के दीप ने हर मोड़ रोशन किया रोग(2)

कभी तू पास था, कभी दूर सा लगा रोग
तेरी चाहत में हर घड़ी मेरा दिल बहका रोग(2)

रात की तन्हाई में तेरी हँसी गूंजती रोग
हर दर्द की छाया में तेरी मुस्कान चमकती रोग (2)

तेरी बातें मेरी तन्हाई को सुकून देती रोग
तेरी यादें मेरे हर पल में रंग भर देती रोग(2)

जी आर कहता है, इस दिल की हर दास्तां रोग
तेरी मोहब्बत में बंधा हर ख्वाब और हर अरमान रोग (2)

जी आर कवियुर 
02 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)


मन (ग़ज़ल)

मन (ग़ज़ल)

मन की राहें सूनी हों तो चलना मुश्किल हो जाता है
मन में उठती साँसें भी जैसे रुक-रुक कर जाती हैं

मन की चुप में अक्सर अपनी धड़कन सुनाई देती है
जैसे कोई छाया भीतर धीरे से खिल जाती है

मन थक कर बैठ भी जाए, फिर भी जाग उठता है
एक हल्की उम्मीद की किरण कदमों में उतर आती है

मन जब बोझिल होता है, दिन भी भारी लगते हैं
पर भीतर की रोशनी फिर नई शक्ति दे जाती है

मन की डोर पकड़कर चलना जीवन का नियम माना है
हर मोड़ पे यह साथ रहे, इतना ही बस अरमान हमारा है

मन जितना गहरा देखो, उतनी ही शीतलता मिलती है
जैसे शांत नदी की तह में धीमी रूप-लहर खिलती है

जी.आर. कहता है मन को समझो, यह नदियों जैसा है
कभी शांत बह जाता है, कभी लहरों जैसा उठ जाता है

जी आर कवियुर 
02 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Monday, December 1, 2025

उजाला लाई (ग़ज़ल)

उजाला लाई (ग़ज़ल)

तेरी आंखों की जो चमक मेरे लिए उजाला लाई
फिर मिलने की ख्वाहिश मेरे दिल में हवा लाई

हर मोड़ पर तेरा नाम मेरी साँसों में बसा
तेरे बिना जो जिंदगी है, वो अधूरी रह गई, खाली लाई

चाँद की रौशनी भी फीकी लगे तेरे सामने
तेरे कदमों की आहट से ही घर मेरा महक लाई

हर ख्वाब में तू ही तू, हर ख्याल में तू ही तू
तेरी हँसी की मिठास ने मेरी रातों में उजाला लाई

तेरी मोहब्बत की खुशबू ने मुझे जीना सिखाया
तेरे प्यार की छाँव में हर ग़म मेरा खिला लाई

तेरी आँखों में बसा है मेरा सारा जहाँ
तेरे प्यार ने ही मेरी दुनिया को नया रंग दिखाया लाई

जी आर की मोहब्बत में हर पल है रोशन
हर ख्वाब, हर सांस में बस तेरा ही नाम बसाया लाई

जी आर कवियुर 
01 12 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

फूलों की मिठास

फूलों की मिठास”

प्रेम, आनंद, आशा संग मिलकर,
जीवन में भरते हैं उजियारा पल भर।
हृदय की धड़कन में गीत उभरता है,
हर फूल का स्पर्श स्मृतियों में ठहरता है।

फूलों की मिठास में मन खिल उठता है,
रंग धीरे-धीरे सौंदर्य रचता है।
बारिश और खुशबू जब संग बहती है,
सुगंध अनंत आकाश में रहती है।

रात के तारे आँखों में चमक उठते हैं,
पक्षियों के स्वर गीतों में ढलते हैं।
संध्या की किरणें धरती पर ढलती हैं,
हरे पत्तों पर रंगों की छाया खिलती है।

नदी की लहरें पुरानी बातें कहती हैं,
समय सपनों सा आगे बढ़ता रहता है।
नेत्रों में दीप-सी झिलमिल रोशनी,
स्मृतियाँ तट पर आकर मिलती हैं।


जी आर कवियुर 
01 12 2025 
(कनाडा , टोरंटो)



हवाओं की लहरें

हवाओं की लहरें

लहरों के संग सपने बहते चले,
पेड़ों की पत्तियाँ गुनगुनाएँ मधुर सवेले।

नीला आकाश चमके अपनी छाया में,
पंखों पर उड़ते पक्षी कहानियाँ लाया में।

संध्या का स्पर्श धरती तक पहुँचे धीरे,
मिट्टी की खुशबू बहती पथों में धीरे-धीरे।

हृदय जागे ठंडी छाँव के आलिंगन में,
स्मृतियों के बादल बहें बहाव में।

प्रेम, सुख, दुख, आनंद मिलकर बने,
जीवन बहता रहे प्रकृति की धारा में।

हर लहर नई दिशा की कहानी कहे,
स्थिर क्षणों में भी यात्रा आगे बढ़े।

जी आर कवियुर 
01 12 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

कर्मनिष्ठ

कर्मनिष्ठ

कर्तव्यों में लगा, आगे बढ़ता हूँ,
संध्या के सपने भी हासिल करता हूँ।

कर्म में हृदय गाता है,
यादों के लिए राह बनाता है।

दैनिक जीवन में कदम खिलते हैं,
आशाएँ ऊँचाई पर उठती हैं।

साहस के पड़ाव में विश्राम ढूँढता हूँ,
समय के प्रवाह में बदलाव देखता हूँ।

जीवन की छोटी सफलताओं को संजोता हूँ,
परिश्रम से मिली बुद्धि का मूल्य समझता हूँ।

निश्चय और आत्मविश्वास के साथ,
कर्म पथ को शक्ति से आगे बढ़ाता हूँ।

हर दिन नई चमक के साथ,
सृष्टि की उपस्थिति अनुभव करता हूँ।


जी आर कवियुर 
01 12 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

नशा का (ग़ज़ल)

नशा का (ग़ज़ल)

तेरी आँखों में मधुशाला भरी है नशा का,
तेरे होठों पे प्याला प्यार का नशा का।

तेरे केशों की छाया में रातें उतरती हैं,
हर पल में बसता है बहार का नशा का।

हवा भी तेरी लटों से महक उठी है,
उद्यान में बिखरा है इकरार का नशा का।

तेरे मौन अधरों से भी साज़ बजता है,
हर सुर में छिपा है इज़हार का नशा का।

मन चाहता है फिर तेरी महफ़िल में खो जाए,
फिर जी ले कोई बहार का नशा का।

कहता है ‘जी आर’ तुझसे नज़रें मिला कर,
मिल जाए मुझे भी दीदार का नशा का।

जी आर कवियुर 
01 12 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

Sunday, November 30, 2025

सुबह की बर्फबारी

मौन किरणों-से गिरती बर्फ आसमान को छूती है,
बालकनी से दिखती शांति मन को सहलाती है,
टोरण्टो कोमल चादरों में धीरे-धीरे जगता है,
छतों पर सर्दियों की चाँदी-सी लकीरें उतरती हैं।

ठंडी सुबह में सांसें हल्के धुंए-सी घुल जाती हैं,
कदमों के निशान नरम बर्फ में खो जाते हैं,
बादल चमकती ठंडी राहें बिखेरते चलते हैं,
पेड़ खड़े हैं श्वेत सौम्यता में लिपटे हुए।

जमी हुई हवा में क्षितिज हल्का-सा चमकता है,
दूर की प्रतिध्वनियाँ सफेद परदों में खो जाती हैं,
प्रकृति शांत अद्भुत चित्रों को गढ़ती रहती है,
दिल सुबह की बर्फबारी में उजास पाते हैं।


जी आर कवियुर 
30 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

Saturday, November 29, 2025

तलाशता हूँ (ग़ज़ल )

तलाशता हूँ (ग़ज़ल )

खो गया हूँ इस शहर की भीड़ में है
तुझे खोजा इस यादों की भीड़ में है

सन्नाटों में तेरी आवाज़ तलाशता हूँ
भीगे हुए ख्वाबों में तुझको पाता हूँ

रास्तों की धूल में तेरी खुशबू बसी है
हर मोड़ पर तेरी यादें गुमसुम चलती हैं

नींदें चुराकर तूने मेरी रातें रंगीं
अधूरी बातें तेरे नाम ही कहती हैं

हर तस्वीर में तेरा चेहरा दिखता है
दिल की तन्हाई भी अब तुझसे ही मुस्कुराती है

जी आर की मोहब्बत ने ये हकीकत लिख दी
तन्हाई में भी तेरे ख्वाब मेरे साथी हैं

जी आर कवियुर 
28 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

यादों का सिलसिला” (ग़ज़ल)

यादों का सिलसिला” (ग़ज़ल)

ग़िला-शिकवे के फासले में भी,
तेरी यादों का सिलसिला है बाकी अभी।

राहों में तन्हाई की खुशबू बिखरी है,
हर मोड़ पर तेरी परछाई बाकी अभी।

ख़ामोशी की भीड़ में तेरी हँसी सुनाई देती है,
दिल की दीवारों पर तेरा नूर बाकी अभी।

वक्त के बहाव में भूल जाने की कोशिश की,
पर दिल में तेरी यादों का साया बाकी अभी।

चांदनी रातों में तेरी बातों का असर है,
सपनों की दुनिया में तू मौजूद अभी।

हर शेर में बस तेरा नाम मैं गुनगुनाऊँ,
ग़ज़ल के हर मोड़ पर जी आर बाकी अभी।

जी आर कवियुर 
29 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

“ये इश्क़ भी क्या चीज़ है” (ग़ज़ल)

“ये इश्क़ भी क्या चीज़ है” (ग़ज़ल)

ये इश्क़ भी क्या चीज़ है, हर बार समझाता हूँ,
मैं तुमको भुलाने के लिए कितना सँभल - सँभल जाता हूँ(2)

तेरी ही तरफ़ चल पड़ती हैं राहें चाहे जहाँ जाऊँ,
हर मोड़ पे तेरी यादों का इक मेला-सा सज जाता हूँ(2)

दिल में दबी ख्वाहिशें तेरी, पल-पल सरगर्मी लाती हैं,
सूने कमरों में तेरी धुन बनकर हलचल मच जाता हूँ.(2)

रातों की चादर जब ढलती है, तन्हाई गुनगुनाती है,
तेरे लहजे की परछाईं बन मैं खुद में ही खो जाता हूँ(2)

तनहाई में तेरी आवाज़ें फिर दिल को भरमाती हैं,
ख़ामोशी के सायों में मैं ख़ुद को ढूँढता-मिट जाता हूँ(2)

जी आर से पूछो क्या खोया, क्या पाया इस राह-ए-इश्क़ में,
तेरे बाद भी हर पल तेरा ही नाम वो दोहराता हूँ(2)

जी आर कवियुर 
27 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

Friday, November 28, 2025

यादों में (ग़ज़ल)

यादों में (ग़ज़ल)

तुम बिना इस जीवन में ग़म भरा है यादों में,
क्यों सताती है हर धड़कन मुझे यादों में।

जीवन सूना लगता है तुम्हारे बिना,
फूलों और चाँदनी भी खो गई हैं यादों में।

तुमको ही सोचकर मैं हर पल कटता हूँ,
उम्मीदों और भूलों में बस जी रहा हूँ यादों में।

हर दिन मैं तुम्हारी मौजूदगी ढूँढता हूँ,
अंधेरों में भी तुम्हारा साया रोशनी बनता है यादों में।

तुम बिना पूरा जीवन अधूरा है,
तुम्हारे प्यार की धुन में खुशियाँ गूँजती हैं यादों में।

आशाओं के आसमान में तुम सितारा बनकर चमकती हो,
सभी खुशियाँ भरपूर होती हैं यादों में।

तुम्हारी मधुर मुस्कान से मन भर जाता है,
तुम्हारे रास्तों में मैं राह तलाशता हूँ यादों में।

आज जी आर ने लिखी ये पंक्तियाँ दिल में बसी,
दिल भर जाता है हर पल, खोया रहता हूँ यादों में।


जी आर कवियुर 
28 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

‘तेरी ख़ामोशी में (ग़ज़ल)

‘तेरी ख़ामोशी में (ग़ज़ल)

तेरी ख़ामोशी में भी कुछ बातें छुपी मिलती हैं,
धड़कनों की दस्तक से ये सूरत खुली मिलती हैं।

तेरे साये की नरमी अब भी साथ मेरे चलती है,
रातें तेरी यादों से ही महकी हुई मिलती हैं।

तेरे जाने की आहट ने मौसम को बदल डाला,
अब हवाओं में तेरी खुशबू ही घुली मिलती हैं।

दिल की गलियों में तेरे कदमों की रौनक है,
तेरे बिन ये धड़कनें भी कितनी अधूरी मिलती हैं।

जो रिश्ते दूर रहकर भी पास ही लगते हैं,
ऐसी मोहब्बतें हर दिल में कहाँ कभी मिलती हैं।

तेरी आँखों की चमक से ही शामें सजती थीं,
तेरे बिन ये रातें भी कितनी फीकी-सी मिलती हैं।

हर लम्हा तेरी चाहत को ही आईना मानता हूँ,
तेरे बिन ये सांसें भी जैसे बंद पड़ी मिलती हैं।

जी आर की हर ग़ज़ल में तेरी कहानी बसती है,
लफ़्ज़ लिखूँ तो तेरी यादें ही क़लम में उतरती हैं।’


जी आर कवियुर 
27 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

स्मृतियों का खुला दरवाज़ा (ग़ज़ल)

स्मृतियों का खुला दरवाज़ा (ग़ज़ल)

खुला है यादों का दरवाज़ा,
तुम आए बिना मैं खड़ा हूँ उस दरवाज़ा।

हर रात की ख़ामोशी में तेरी यादें,
मन में गूंजती, जैसे कोई पुराना दरवाज़ा।

वो बहती हवा, वो बूँदों की आवाज़,
हर पल मुझे खींचती उस खुलते दरवाज़े की ओर।

छाँव में बैठा देखता तुम्हें,
हर साँस में बसता वही प्यार का दरवाज़ा।

होंठों पर मुस्कान की खुशबू,
आँखों में बसी तुम्हारी यादें,
हर धड़कन में गूँजता वही दरवाज़ा।

सन्नाटे में गुनगुनाता मन,
तेरी बातें सुनकर खो जाता हर दरवाज़ा।

अभी भी सुनता हूँ मैं अंदर की गूँज,
वो चुप रहकर कहती कहानी, वही दरवाज़ा।

मोहब्बत का अहसास जो भरता है हृदय,
जी आर ने देखा, महसूस किया, यही दरवाज़ा।

जी आर कवियुर 
(28 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)



बरसात (ग़ज़ल)

बरसात

बरसात ने बहा दिया,
आँखों में यादें बहा दिया।

दिल में सुरों का गान गाया,
चाँदनी बिखरी, साया फैलाया।

बरसात ने बहा दिया,
हवा में शाम का मुस्कान बहा दिया।

नींद में सपनों ने रंग भरे,
बिना जाने जगी, धीरे आँखें खोले।

तुम भी चले गए, कहीं छुप गए,
अँधेरे में उजाले ने बहा दिया।

बरसात ने बहा दिया,
प्यार की यादों में हर दिल ने बहा दिया।

जिंदगी की राहों में लिखी यादों की बात में,
जी आर की मोहब्बत चाँदनी की तरह बहा दिया।

जी आर कवियुर 
(28 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

Thursday, November 27, 2025

कविता : मौन प्रहरी

 कविता : मौन प्रहरी: एक क्रिसमस चिंतन



प्रस्तावना

ऊँचे नटक्रैकर के पास इतिहास, वीरता और उत्सव की खुशी मिलती है। यह लकड़ी का प्रहरी, क्रिसमस की खुशियों का प्रतीक, दूर के सैनिकों की यादें, विविध संस्कृतियाँ और शाश्वत परंपराएँ लेकर खड़ा है। शांत निरीक्षक महसूस कर सकता है कि कैसे अतीत और वर्तमान कोमल उत्सव में मिलते हैं।


कविता : मौन प्रहरी


ऊँचे नटक्रैकर के पास खड़ा एक शांत दृश्य,

कवच चमकता है पुरानी यादों के ज्वाल में।

क्रिसमस की खुशी नाचती है हर प्रकाश में,

गीतों और हंसी से भर जाते हैं हृदय रात में।


जर्मन सैनिकों की कथाएँ धीरे उठती हैं,

अमेरिकी गार्ड की शान सबकी आँखों में चमकती है।

भारतीय वीरता उभरती है रक्तरंजित मैदान में,

ढाल चमकती हैं इतिहास की जीवंत कहानी में।


लकड़ी का प्रहरी चमकता है उजाले में,

सांस्कृतिक पुल जोड़ता है दुनिया में।

इतिहास कहता है सेनापतियों की राह,

क्रिसमस फैलाए प्यार, खोलें हर दिल की चाह।


जी आर कवियुर 

(27 

11 2025)

(कनाडा, टोरंटो)

भूमि में खिलना”

भूमि में खिलना”

नई उपलब्धियाँ खिलती हैं धरती पर
हवा में फैलती है खुशबू का असर
खेतों में गूंजते हैं चिड़ियों के गीत
नदियाँ जागती हैं, बहती हैं तालमेल में

छोटे पौधे खिलते हैं सूरज की रोशनी में
हृदय भर जाता है खुशी की मिठास से
सपने उड़ते हैं कल के पंखों पर
रेत चमकती है रोज़मर्रा के दृश्य में

हाथ मिलते हैं, दोस्ती की राह खोजते
अधिकार पुकारते हैं सच्ची ज़िंदगी के लिए
समानता फैलती है हरियाली की तरह
दुनिया उठती है प्रेम और गर्व के साथ

जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

“पहाड़ी की चोटी पर”

पहाड़ी की चोटी पर” 

पहाड़ी की चोटी पर फैलता है सूरज का उजाला
ठंडी हवाएँ गाती हैं घूमती राहों पर माला
रेतीली पगडंडियों पर खिलते हैं छोटे पौधे
पूर्वी हवा के संग चमकती हैं नदियाँ अनेक

साया मिटता है कोमल प्रभात में
हृदय भर जाता है शांति की मधुर छाँव में
पहाड़ी शिखरों पर पक्षी फैलाते हैं पंख
विभिन्न वृक्ष बिखेरते हैं अपनी सुगंध संग

हाथ उठते हैं, प्रेम को पास थामते हुए
मार्ग चमकते हैं दैनिक जीवन की समझ के साथ
अधिकार पुकारते हैं स्वतंत्रता के लिए
दुनिया उठती है, समानता की रौशनी में

जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)


मुक्ति दिवस”

मुक्ति दिवस” 

ज़ंजीरें टूटती हैं, उजाला फैलता है
बाँधें गिरती हैं, स्वतंत्रता का रास्ता मिलता है
दुःख मिटता है, शांति में खिलता है
हृदय उठते हैं, आशा की गूँज के साथ

अंधेरा दूर होता है, तेज़ रौशनी फैलती है
हाथ जुड़ते हैं, न्याय की पुकार सुनाई देती है
मन भर जाता है करुणा के गीत से
सपनों के पंख हमें ले जाते हैं आगे

अधिकार जागते हैं, नए आरंभ का संदेश देते हैं
विचार बढ़ते हैं सत्य की मिट्टी में
मार्ग चमकते हैं समानता की यात्रा में
दुनिया जागती है दासता-मुक्त भविष्य के लिए

जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

कारवाँ है (ग़ज़ल)

कारवाँ है (ग़ज़ल)

ज़िंदगी ज़िंदादिलों का कारवाँ है,
जीत–हार की भूल — ये जाना भी कारवाँ है(2)

चलते रहो तो हर दर्द भी नभ का उजाला,
हर लम्हा ही तन्हा-सा कारवाँ है(2)

सच्चाई का रस्ता कभी सूना नहीं होता,
झूठ की हर चकाचौंध बस धोखा कारवाँ है(2)

हर मोड़ पे इंसान को मिलता है तजुर्बा,
और हर तजुर्बा दिल को नया रस्ता कारवाँ है(2)

क्षणिक ये जहाँ, इसका फ़साना भी क्षणिक,
बेख़ौफ़ जीना ही जीने का असली दावा कारवाँ है(2)

जी.आर. ने फ़लसफ़े की राह यूँ ही चुनी है,
उनके दिल में हर लफ़्ज़ सदा ज़िंदा कारवाँ है(2)


जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

“छः फ़ुट की सच्चाई”


“छः फ़ुट की सच्चाई”

अंत में इंसान को बस छः फ़ुट मिट्टी ही मिलती है,
अनाथ दिनों की परछाइयाँ भीड़ में खो जाती हैं।

अहंकार रात की हवा में उड़ती धूल बन जाता है,
दिल ख़ामोशी में ढलकर एक पुरानी याद बन जाता है।

शोहरत और पद भी मिट्टी में घुल जाते हैं,
गाए हुए गीत, बँटी हुई हँसी राख बन उड़ जाते हैं।

ज़िंदगी एक दरवाज़ा खोलती है, दूसरा चुपचाप बंद करती है,
जन्म से मृत्यु तक पल ही तो हमारे साथी हैं।

जब आख़िर में हाथ खाली रह जाते हैं इस सफ़र में,
सिर्फ़ प्यार बचता है — बाक़ी सब अनाथ धूल बन जाता है।


जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

Wednesday, November 26, 2025

अनंत की ओर

अनंत की ओर 

क्या गरजता समंदर हँस रहा है?
या लहर तट पर रो रही है?
क्या मन के भीतर कोई सूक्ष्म तार
अनंत धैर्य से सुन रहा है?

जब एक हवा किनारे से गुजरती है,
क्या कोई बाती बिना बुझें जलती रहती है?
क्या नरम पत्तियाँ हवा की ताल पर
धीरे से झूमती रहती हैं?

अनंत, अज्ञात, और वर्णनातीत—
क्या कोई सच में उसे जान पाया है?
क्या यह पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है?
क्या सूरज भी अपनी ही दिशा में चलता है?
और क्या कुछ भी उसके जाने बिना होता है?

जो अपने को सबसे बड़ा समझता है,
क्या उसके अहंकार और दिखावे की कोई सीमा है?
अग्नि, आकाश, जल, वायु, पृथ्वी—सबको अपना कहने वाला,
अंत में सिर्फ छह फुट मिट्टी में सिमट जाता है।

जी आर कवियुर 
(26 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

दिल की चिलमन से” (ग़ज़ल)

दिल की चिलमन से” (ग़ज़ल)

तू मेरे दिल की चिलमन से उभरती दुआ लगे,
तेरा नशा मुझे में उतरकर नग़्मों-सा ही लगा लगे(2)

तेरी आहट से धड़कन को नया ये साज़ बजा लगे,
तेरे कदमों की ख़ुशबू से हर मौसम हरा लगे.(2)

तेरी पलकों की छाँव में हर ग़म भी हल्का लगे,
तेरे चेहरे की रौशनी में दिल खुद को पूरा लगे(2)

तेरी राहों में चलते ही इक अपनापन सा लगे,
तेरे होने से ये दुनिया भी थोड़ी अपनी लगे(2)

तेरे बिना ये पल-पल जैसे ठहरी हुई हवा लगे,
तेरे लफ़्ज़ों के आने से जीना फिर नया लगे(2)

तेरी मुस्कान की रौशनी में हर दर्द दवा लगे,
तेरी आँखों की गहराई में दुनिया भी सजा लगे(2)

जी.आर. तेरी यादों में डूबा दिल आज भी रमा लगे,
तेरी मोहब्बत की छाँव में जीना क्या ख़ूब लगा लगे(2)

जी आर कवियुर 
26 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

अकेला और दुकेला" (ग़ज़ल)

अकेला और दुकेला" (ग़ज़ल)

जब लगे खुद को दुनियासे अकेला
तब देख लेना आईने में झलके दुकेला(2)

रात की ख़ामोशी में भी लगे दिल अकेला
हर सन्नाटे में छुपा कोई अपना दुकेला(2)

तारों की चुप्पियों में भी गूँजता मन अकेला
हर पल में बसी यादें, कभी मीठा, कभी दुकेला(2)

सन्नाटे की गलियों में भी बहती अनकही बातें अकेला
हर धड़कन में छुपा है दर्द और सौगात दुकेला(2)

सपनों के परदे पर मुस्कान और तन्हाई अकेला
हर दाग़ में बसी यादों की परछाई दुकेला(2)

जी आर कहता है, ये दिल न जाने किसको चाहा अकेला
आँखों में बसे कई चेहरे, पर हर एक से रहा दुकेला(2)

जी आर कवियुर 
26 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

प्यार की रूहानी सफर (सूफी ग़ज़ल)

प्यार की रूहानी सफर (सूफी ग़ज़ल)

लहरों में बिखरी है तन्हाई की दास्तान भुला दो,
दिल के हर साये में इक ख़ुदा का निशान भुला दो(2)

रूहानी रंगों में जो भी तेरे नाम के तराने,
उन सांसों के मीठे अफ़साने अब भुला दो(2)

जमाने की भीड़ में खोये जो निशाने-ए-इश्क़,
उन हवाओं के सभी फ़साने अब भुला दो(2)

जो दिल ने खोजे थे राह-ए-हक़ीक़त के बहाने,
उन तलाशों के पुराने फ़साने भुला दो(2)

शब-ओ-रोज़ में जो चमकते थे इश्क़ के सितारे,
उन नूरानी पुराने तराने भुला दो(2)

जी आर के हर दिल के अफ़साने भुला दो,
अब ग़ज़ल में भी तुम्हारे ही फ़साने भुला दो(2)

जी आर कवियुर 
26 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

लोग कहते हैं भुला दो (ग़ज़ल)

लोग कहते हैं भुला दो (ग़ज़ल)


लोग कहते हैं कि यादों के तराने भुला दो,
लगता है हमें वो दिल के निशाने भुला दो(2)

तेरी बातों के सभी मीठे फ़साने भुला दो,
जो दिल ने लिखे थे रातों के अफ़साने भुला दो(2)

तेरी राहों में बिछे थे जो पुराने बहाने,
अब उनसे उठे हुए सब तहख़ाने भुला दो(2)

तेरी धड़कन के जो आए थे पुराने तराने,
मेरे सीने में छुपे उन अफ़साने भुला दो(2)

जो भी मौसम थे कभी दर्द के तीर चलाने,
उन हवाओं के सभी तीखे निशाने भुला दो(2)

अब जो पल-पल में तेरी याद जगाए फ़साने,
जीने के लिए वो टूटे तराने भुला दो(2)

जी आर के सभी दिल के अफ़साने भुला दो,
अब ग़ज़ल में भी तुम्हारे ही फ़साने भुला दो(2)

जी आर कवियुर 
25 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Tuesday, November 25, 2025

पसंद आती है,(ग़ज़ल)

पसंद आती है,(ग़ज़ल)

अब तेरी मीठी इश्क़ में तन्हाई पसंद आती है,
तेरी यादों की महक दिल को पसंद आती है(2)

रात की ख़ामोशियों में तेरी धड़कन सुनाई देती,
कुछ अजीब-सी ये तन्हाई भी अब रंग लाती है(2)

तेरे जाने के बाद भी तेरी आहट दिल को छू जाती है,
हर कदम पर तेरी चाहत मुझे छूती जाती है(2)

अंखियों में बसते सपने तेरी तस्वीर बना लेते,
फिर वही अश्कों की गरमी दिल को समझाती है(2)

इक मोहब्बत की रवानी है जो थमती ही नहीं,
तेरी राहों की ये खुशबू भी साथ निभाती है(2)

जी आर बरसों बाद भी दिल से मानता है,
पहली धड़कन याद आती है(2)

जी आर कवियुर 
25 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

ये सफ़र (ग़ज़ल)

ये सफ़र (ग़ज़ल)


ख़ामोशियों ने सँवारा यादों का ये सफ़र,
धड़कन ने धीमे-धीमे लिखा दिल का ये सफ़र(2)

रातों की रेत पर बिखरे पांवों के निशाँ,
चुपके से शाम ने ढोया ख़्वाबों का ये सफ़र(2)

तेरी हवा ने जहाँ-तहाँ रूह को छुआ,
महका सा छोड़ गई फिर जज़्बों का ये सफ़र(2)

दिल की कहानी कोई समझे भी तो कैसे,
खुद से छुपा के चला हूँ तन्हा-सा ये सफ़र(2)

तेरी सदा की रौ में बहती रही रगें मेरी,
सुनता रहा वही दिल, धड़कनों का ये सफ़र(2)

जी आर के क़दम यूँ ही राहों में मुश्किलों से,
कुछ हँसी, कुछ दर्द लिए कटता रहा ये सफ़र(2)

जी आर कवियुर 
25 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


राम राम भजे मन

राम राम भजे मन 

प्रभु के सेवा में तन-मन हो सदा प्रसन्न,
प्रेम नगर के वासी बन, मेरा मन डोले।
राम दून सदा जपे, शरण तुम्हारी ले,
सदा हो आभा तुम्हारी, जीवन में उजियारे(2)

राम राम भजे मन सदा, राम राम
भक्ति में लीन हो जाएँ हम, राम राम

सत्य पथ पर चलूँ, हर कष्ट से बचाऊँ,
भक्ति भाव में लीन रहूँ, जीवन को सजाऊँ।
संग तुम्हारा पा लूँ, दुःख न कोई छू पाए,
प्रभु के चरणों में मैं, सदा निवास करूँ(2)

राम राम भजे मन सदा, राम राम
भक्ति में लीन हो जाएँ हम, राम राम

भक्तों के संग गाऊँ, नाम तुम्हारा हरदम,
मन में प्रेम भर लूँ, जैसे पुष्पों का भ्रम।
सदा रहूँ तुम्हारे पास, जीवन हो धन्य मेरा,
प्रभु की भक्ति में डूबा, हर दिन हो प्यारा(2)

राम राम भजे मन सदा, राम राम
भक्ति में लीन हो जाएँ हम, राम राम

जी आर कवियुर 
25 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

तूही मेरी आरजू हो (ग़ज़ल)

तूही मेरी आरजू हो (ग़ज़ल)


तू ही मेरी आरजू हो
हर खुशी की वजह तू हो(2)

तेरी यादों में खोया मैं हूँ
हर साँस में मोहब्बत तू हो(2)

चाँदनी रातों में जब तन्हा मैं बैठूँ
हर ख्वाब में रोशनी तू हो(2)

दिल की गहराई में जब भी मैं जाऊँ
हर धड़कन में आवाज़ तू हो(2)

तेरे बिना ये सफ़र अधूरा लगता है
जी आर की दास्ताँ, हर सफ़र में तू हो(2)

जी आर कवियुर 
24 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Monday, November 24, 2025

“सात रहस्य और नियम”

“सात रहस्य और नियम”

तालों में बजते राग, समुद्र की लहरें गुनगुनाएँ,
अंधकार में खिलते प्रकाश, रहस्य चुपचाप राह दिखाएँ(2)

महाद्वीप अपनी कहानियाँ बुनते,
सितारे आँसुओं में गुनगुनाते।
इंद्रधनुष मुस्कुराए, रंग बिखेरते,
समय के पग में सपने जागते(2)

तालों में बजते राग, समुद्र की लहरें गुनगुनाएँ,
अंधकार में खिलते प्रकाश, रहस्य चुपचाप राह दिखाएँ।

मोती जैसे गिरते श्वास,
विचार यात्रा करें ज्ञान के मार्ग।
सत्य और न्याय रखे मार्गदर्शन,
सात नियम, जीवन में प्रकाश(2)

तालों में बजते राग, समुद्र की लहरें गुनगुनाएँ,
अंधकार में खिलते प्रकाश, रहस्य चुपचाप राह दिखाएँ।

एक बार पाया, जादू कभी नहीं छिपता,
सारा ब्रह्मांड एक ताल में, रहस्य जगाता।
तालों में बजते राग, समुद्र की लहरें गुनगुनाएँ,
अंधकार में खिलते प्रकाश, रहस्य चुपचाप राह दिखाएँ(2)

जी आर कवियुर 
24 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)


दीवाना बन गया (ग़ज़ल)

दीवाना बन गया (ग़ज़ल)

तेरे इश्क़ में दीवाना बन गया
हर सांस तुझसे ही जुड़कर रह गया(2)
 
चाँदनी रातों में तेरा ही ख्याल आया
दिल की हर धड़कन में तू बस समा गया(2)

तेरी आँखों की गहराई में खो गया मैं
हर बहका लम्हा मुझे तुझसे जोड़ा गया(2)

सन्नाटों में भी तेरा ही सुर गूँजता है
मेरे ख्वाबों का हर रंग तुझसे भरा गया(2)

हवाओं में घुला तेरा ही नाम पाया
मेरे वीराने दिल में बस तू ही बसा गया(2)

मैं जी आर, तेरे नाम का दीवाना बन गया
तेरे इश्क़ की बारिश में सब कुछ बहा गया(2)

जी आर कवियुर 
24 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

Sunday, November 23, 2025

चल रहा (ग़ज़ल)

चल रहा (ग़ज़ल)

तेरी राहों में खो गया मैं, सफ़र में तनहा चल रहा,
हर कदम पर तेरा नाम था, हर साँस में खुदा चल रहा(2)

चाँदनी में झिलमिलाती, रात मेरी रहबर चल रहा,
अंधेरों में भी दिखती, तेरी रोशनी चल रहा(2)

दिल की प्यास बुझाने को, पानी नहीं ये प्यार चल रहा,
तेरी यादों की धारा में, बस खुदा का अहसास चल रहा(2)

हवाओं से पूछता हूँ, रास्ता तेरी ओर कहाँ चल रहा?
हर मोड़ पर मिले अक्स तेरा, हर राह में पहचान चल रहा(2)

मुरझाए फूलों की तरह, मैं बिखर जाऊँ तेरी चाह चल रहा,
तेरे दरवाज़े की मिट्टी में, खो जाऊँ तेरी राह चल रहा(2)

जी आर ने लिखा ये सफ़र, मेरी रूह ने तुझको देखा चल रहा,
तेरे इश्क़ की ज्वाला में, मैं हर सांस में जिया चल रहा(2)


जी आर कवियुर 
23 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)