Sunday, December 7, 2025

“हूँ…”

“हूँ…”

हूँ…
बिन बोले कह देने वाली आवाज,
जिसे सिर्फ दिल ही समझ पाता है।

हूँ…
हँसी और दर्द को साथ लेकर
मन के भीतर धीमे से उठती धुन।

हूँ…
जब शब्द रास्ता खो देते हैं,
खामोशी की राह पर चमकता चाँद बनती है।

हूँ…
ज़िंदगी थक जाए तब भी
आत्मा को आगे बढ़ने का एक संकेत देती है।

जी आर कवियुर 
07 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

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