Tuesday, September 16, 2014

मैं कौन -


मैं कौन - (कविता ) जी आर कवियूर


मैं कौन हूं

ढूँढता हुँ इस

गली चौबारों में

पहाड़ों से पूछा

नदी नालावोंसे भी पूछा

गीत गाते झरनों से पूछा

सागर की लहरोंसे

आकाश की नीलिमा से

उडते पंछियों से भी पूछा

पेडों से टकराती हवावों से

वार्तालाप से भी लाभ नहीं मिला

दौड़ते दौड़ते थक कर

आँखो बंद बैठे तो

रोश्नी बोली कि मैं हूं

तुम्हारे अन्दर की चेतना ,

सारे संसार मेँ ही हूं

तुम्हारे अलौकिक आनन्द मैं ही हूं

राष्ट्र भाषा दिवस

राष्ट्र भाषा दिवस  - जी आर  कवियूर


३६५ दिनों में एक दिन है

राष्ट्र भाषा दिवस है आज


मन की गहराई यो में छिपी बातो को

वाणी में बदलती है मेरी देशकी

भाषा हिंदी है अनमोल

देवा नागरी से अलंकृत है यह 

२८० लाखो  के लबो में खिलती है कमल कीतरह

क्या सरल और हृदयहारी है इसकी बोली 

३६५ दिनों में एक दिन है

राष्ट्र भाषा दिवस है आज

वाल्मीकि  व्यास लल्लेशवरी  इसे सिने से लगाई

उसे गाकर सुनाये भक्ति भावसे

तुलसी, भरतहरी ,कबीर और  मीराभाई


३६५ दिनों में एक दिन है

राष्ट्रभाषा दिवस है आज


कल्पनिकता की   छत्र शाया में सभाले पंक्तियो से

आमिर  खुशरू रामधारी सिंह दिनकर ,नेपाली ,नीरज

 हरी राई  बचचन ,देश भक्ति केसाथ गाये इकबाल

और अनगिनत सागर की लहर की तरह ,है मेरी अपनी भाषा हिंदी

आवो हम सब मिल कर  इसकी थश
  
हिमालयकी चोटी से भी ऊचा  उठाये


३६५ दिनों में एक दिन है

राष्ट्र भाषा दिवस है आज