बड़े हाथ ओर
रचना
जी आर कवियूर
जीवन की इस दौर में
मेरी बात न मानो
तेरी मन में जो आए
वैसे ही करो यारा
मगर तेरे लिए ही
जीता आया हूं
और मर मिटेंगे
मन की बात सुनो
बेचैनियों से काबू पाओ
बचपन की यादें जवानी तक
जवानी से बुढ़ापा तक
जो कुछ सोचा था सब वेहम
अब तलक जो हुआ
सब भूल कर बढ़ाओ
हाथ जो मानवता के
ओर बढ़ती चली जाए
06 05 2023
जीता हूं तेरे याद में
रचना
जी आर कवियूर
जीता हूं तेरे याद में
मौन खटकता है
बीते हुए दिनों की
आहटओ के पीछे
दबे पांव की खयाल
गली और चौबारे
फांद कर के
थक चुका हूं
एक झलक देखने की
उम्मीदों पर जीता हूं
कुबूल तो नहीं है
फिर भी भूल कर बैठा हूं
होठों पर गजल और जाम
आखिर यह धड़क कितने दिन
जीता हूं तेरे याद में
माउन खटकता है
बीते हुए दिनों की
आहट ओके पीछे
दबे पांव की खयाल
05 05 2023