आंखों से तूने कैची
मेरी पतंग की डोर
पेच लड़ने से पहले ही
कट गई मेरी तो
तू खुद भी बाज़ अब बन गई
उड़ना मेरा इतना आसान
समझ में नहीं आया कब
हो गई तू मेरे तन मन का आन
तेरी ख्वाहिशों में खोकर
मैंने भूला अपना सफर
अब तू बन गई है मेरी तक़दीर
मेरी पतंग का हुआ बेहाल हाल
पर फिर भी चलता है ये खेल
क्योंकि तू है मेरी मधुर सख़ा
तेरी हँसी में छुपी है मेरी खुशियाँ
और मेरी पतंग अब है तेरी राहों का मार्ग।
रचना
जी आर कवियूर
11 03 2024