तोफाये - कविता
वादये इश्क़का
तोफाये कुबूल करले
आये गये कितने
जन्म जनमांनदार तक
फुलोकि खुशबु भी
भवरोकि गूंजने
कोयलकी बोलियां
मयूरकी पंक फैलाना
सागरकी गरिमा से
इश्कके तोफे दे जातेहै
लहरों से चुम्बन की कम्बन
दे जाती है किनारे को
बदलकी सहलाना
चोटियोंको दे हरियाली
जहाँभी देखो तो
इश्ककी तोफाये तोफा है
जी आर कवियूर
11 02 2021
हमने परका
हमने परका परका
यादों की किताबों में
ऑटो सिली थी
कलम का शाही भी
खत्म हो चुकी थी
दोबारा तो लिख नहीं सकते
यादों की इन बातों को
लोटा भी नहीं सकता हूं
अर्जी करो किस्से
यह बेवफा दुनिया की
दस्तूर ओं से
माफ करो
मेरी इन हरकतों से
कैसे कहूं अभी भी
कितना चाहता हूं तुझे
हमने परका परका
यादों की किताबों में
ऑटो सिली थी
कलम का शाही भी
खत्म हो चुकी थी
जी आर कवियूर
11.04.2021