Monday, April 12, 2021

तोफाये - कविता

 तोफाये - कविता 


वादये इश्क़का

तोफाये कुबूल करले 

आये गये कितने 

जन्म जनमांनदार तक 


फुलोकि खुशबु भी

भवरोकि गूंजने 

कोयलकी बोलियां

मयूरकी पंक फैलाना 


सागरकी गरिमा से 

इश्कके तोफे दे जातेहै 

लहरों से चुम्बन की कम्बन 

दे जाती है किनारे को 


बदलकी सहलाना 

चोटियोंको दे हरियाली 

जहाँभी देखो तो 

इश्ककी तोफाये तोफा है 


जी आर कवियूर 

11  02  2021  

      

Saturday, April 10, 2021

हमने परका

 हमने परका


हमने परका  परका  

यादों की किताबों में 

ऑटो सिली थी  

कलम का शाही भी

 खत्म हो चुकी थी  


दोबारा तो लिख नहीं सकते  

यादों की इन बातों को  

लोटा भी नहीं सकता हूं  

अर्जी करो किस्से  

यह बेवफा  दुनिया की

दस्तूर ओं से


माफ करो  

मेरी इन  हरकतों से  

कैसे कहूं  अभी भी

कितना चाहता हूं तुझे  


हमने परका  परका  

यादों की किताबों में 

ऑटो सिली थी  

कलम का शाही भी

खत्म हो चुकी थी  


जी आर कवियूर  

11.04.2021