मेरे चैन ॥
(ग़ज़ल - जी आर कवियुर 18 .07 .2016 )
तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन ॥
चाहत इतना क्यों करे तेरे नेन
चांदनी भी शरमाई
चंचल चकोरी भी चहके
चन्दन महके तेरी बोली
तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन ॥
आँचल तेरे क्यौं इतने गीले
आखे भी इतने लाल
सावन की इस बरखा में
आई नहीं क्या तेरे दिलबर
तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन ॥
आखिर तुनही जाने
तू और वो नहीं दूजा
कही भी रहे वो तुम से दूर भी
हे तोहरे दिल में रहे अनमोल
तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन ॥
(ग़ज़ल - जी आर कवियुर 18 .07 .2016 )
तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन ॥
चाहत इतना क्यों करे तेरे नेन
चांदनी भी शरमाई
चंचल चकोरी भी चहके
चन्दन महके तेरी बोली
तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन ॥
आँचल तेरे क्यौं इतने गीले
आखे भी इतने लाल
सावन की इस बरखा में
आई नहीं क्या तेरे दिलबर
तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन ॥
आखिर तुनही जाने
तू और वो नहीं दूजा
कही भी रहे वो तुम से दूर भी
हे तोहरे दिल में रहे अनमोल
तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन ॥