Saturday, October 30, 2010

तन्हाई- (सन २०००-२००१ क़तर में लिखी गयी कविता ) जी आर कवियूर

क़तर     में    आके
खतरा जो मोल लिया 
खबर क्या बताये,
बेखबर हो गया खत्मसा हो गया
शांति रूठ  गई
क्षमा और शमा भी बुझ  गई 
रोशनी    की रंगत के लिए 
रोशन  गुल होकर भी
समय भी साथ न रहा  
संजोता करू कैसे  
उनकी याद में जी रहा हूँ
उजड़ा हुआ  इस दुनियाँ में
आशा भी निराशा हो गई
थे कभी वे सब अपने 
अब बेगाने हो गऎ    

Tuesday, October 19, 2010

शराब और शबाब .. कविता: जी आर कवियूर

मैखाने में मिले तो आप से

तुम पे उतरे





जामसे जाम मिले तो तुम से तू में उतरे




पूरी हुवी जब पेखानेसे निकले तो फिर आपे उतरे



क्या समझ में आया ये है शराब



कली खिली महकी मनमोह उठी



चन्द वक्त गुजारी तो मुर्जा गई

और बू उठी यह है शबाब समझ ये जनाब

Monday, October 18, 2010

सात फेरे वाली कहानी कविता : जी आर कवियूर

शादी
बरबादी
दर आधी
दे आदी
पाव भारी
आबादी
निन्द आधी
कर वानी हे और शादी
कर से भारी
यह हे संगट वाली
न करियो तो जिन्दगी अदुरी