Wednesday, August 3, 2016

हम है मधेपुरामे - कविता जी आर कवियूर

हम है मधेपुरामे - कविता जी आर कवियूर (03.08.2016)



बाहर मे हूं बिहार मे मधेपुरा में हूं
अंग्रेजोके दिनोमे
कोशीकेँ किनारे इस जगहपर
बीमारो और छुट्टी जाने वाले 
जवान पटाव टालते थे
अब हमभी आ  पहुंचे
दुःख दर्द क्या बताये
मानकी भटक निकालू  कैसे
जोतो ठहरा है  इस मज़बूरी के
नाम को कहते है  मधेपुरा
भगवान माधव  के जगह
बनगाई माधवपुर
मिथिलाके इस महा जगे के निकट
रहते सिख हृषि वे रामायण कालपे
किया पुत्र कामेष्टि याग शाला
कहलाते है सिंगेश्वर
काटु कैसे इस मधुबिना गोशालामें
मगर महँगी है हर चीज भी
सस्ता है  इन्सान
अंगारे बन जाते है आंसू
हर तरफ से है शांत रहके
लोग कहते है मधेपुरा निवासी ii

Sunday, July 17, 2016

मेरे चैन ॥

मेरे चैन ॥
(ग़ज़ल - जी आर कवियुर  18 .07 .2016 )

तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन ॥

चाहत इतना  क्यों करे तेरे नेन
चांदनी भी शरमाई

चंचल चकोरी भी चहके
चन्दन महके तेरी बोली

तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन  ॥

आँचल तेरे क्यौं इतने गीले
आखे भी इतने लाल

सावन की इस बरखा में
आई नहीं क्या  तेरे दिलबर

तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन  ॥

आखिर तुनही जाने
तू और वो नहीं दूजा

कही भी रहे वो तुम से दूर भी
हे तोहरे दिल में रहे अनमोल

तू तटपाये मेरे मन को
चुराई तूने मेरे चैन  ॥