हम है मधेपुरामे - कविता जी आर कवियूर (03.08.2016)
बाहर मे हूं बिहार मे मधेपुरा में हूं
अंग्रेजोके दिनोमे
कोशीकेँ किनारे इस जगहपर
बीमारो और छुट्टी जाने वाले
जवान पटाव टालते थे
अब हमभी आ पहुंचे
दुःख दर्द क्या बताये
मानकी भटक निकालू कैसे
जोतो ठहरा है इस मज़बूरी के
नाम को कहते है मधेपुरा
भगवान माधव के जगह
बनगाई माधवपुर
मिथिलाके इस महा जगे के निकट
रहते सिख हृषि वे रामायण कालपे
किया पुत्र कामेष्टि याग शाला
कहलाते है सिंगेश्वर
काटु कैसे इस मधुबिना गोशालामें
मगर महँगी है हर चीज भी
सस्ता है इन्सान
अंगारे बन जाते है आंसू
हर तरफ से है शांत रहके
लोग कहते है मधेपुरा निवासी ii
बाहर मे हूं बिहार मे मधेपुरा में हूं
अंग्रेजोके दिनोमे
कोशीकेँ किनारे इस जगहपर
बीमारो और छुट्टी जाने वाले
जवान पटाव टालते थे
अब हमभी आ पहुंचे
दुःख दर्द क्या बताये
मानकी भटक निकालू कैसे
जोतो ठहरा है इस मज़बूरी के
नाम को कहते है मधेपुरा
भगवान माधव के जगह
बनगाई माधवपुर
मिथिलाके इस महा जगे के निकट
रहते सिख हृषि वे रामायण कालपे
किया पुत्र कामेष्टि याग शाला
कहलाते है सिंगेश्वर
काटु कैसे इस मधुबिना गोशालामें
मगर महँगी है हर चीज भी
सस्ता है इन्सान
अंगारे बन जाते है आंसू
हर तरफ से है शांत रहके
लोग कहते है मधेपुरा निवासी ii