Monday, November 1, 2010

दिल के आईने

 
हम तेरी परछाइयो के सहारे जीते हैं.
 
हँसती रहती हो बंद पलकों की नजरो पे.
 
खुलने से टूट गया सापनो का महल.
 
न रही तुम भी मेरे अरमानो के बाँहों में सनम.
 
तेरे लिए गता हूँ सरगम हरगम के आंसू पे.
 
सुनी हे गली और चौबारों पे हर कली तेरे लिए.
 
दिल का किवाड़ खुला रखा हूँ.
 
अंगॆठी की लौ पे सनम.
 
फितरत हे खामोशियो की डगर पर.
 
रुसवा  न करना मुस्कुराहतो की अहठो  से.
 
हटूंगा नहीं तेरी अनगिनत बिन्तियो से.
 
न देख पाई मुझको भी.
 
लगी जो चोट दिल के आईने पे सनम.