Friday, December 17, 2021

बरसती रही

बरसती रही


तेरी आंखों की नदियां
बहती चली सागर की तले
लहरों में पाई मैंने
अंदर की आहट

देख मुझे
घबराहट तो लाती है
जालिम यह हवा
झूठी कहानी फैलाता चला

नजर बरसती रही
दिल तड़पता रहा
सीने की आग भटकता रहा
तन्हाई के आलम में

शाही कलम से बिखरता गया
तेरे नगमे लिखता गया
तू क्या जाने मेरी दिल की धड़कन
आंसू बनकर बरसता गया

जी आर  कवियूर

18 12 2021


Thursday, December 16, 2021

कविता

कविता


दिल के आईने में 
देखता रहा तुझको
दीवारों क्यों खड़ा कर दी 
दावे कितने दिए मैं ने

दीया कितना जलाए मैं ने
देवता सामान पूजा मन मंदिर में
दिक्कतें झेले इस कदर तेरे लिए
दौलत और शोहरत कमाएं तेरे लिए

दरवाजे पर नज़र रखा
तेरे आने की नाम और निशान ना रहा
तनहाई में लिखे नगमे तेरे लिए
 तन-मन की तस्वीर बनाए और
 तुझको मालूम नहीं फाड़ फेंका मैंने

जी आर  कवियूर
17 12 2021

Friday, December 10, 2021

खफा ना होना

खफा ना होना 

तू कभी खफा ना होना 
आंचल में  चेहरा छुपान देना
चांद तले सुलाना देना
आंख भर आई तेरे याद में
तन्हाई में रुलाना देना

सपनों की डगर पर 
जीना सिखा दिया तूने
चंद लम्हों में तेरे लिए
 मुखड़ा गुनगुनाता चला
तू कभी खफा ना होना 

आई होली और दिवाली 
लाई रंग और तरंग 
यादों की गुलदस्ता दे गई 
मगर तू नहीं आई कभी 
तू कभी खफा ना होना सनम
तू कभी खफा ना होना

जीआर कवियूर
10 12 2021