कविता
दिल के आईने में
देखता रहा तुझको
दीवारों क्यों खड़ा कर दी
दावे कितने दिए मैं ने
दीया कितना जलाए मैं ने
देवता सामान पूजा मन मंदिर में
दिक्कतें झेले इस कदर तेरे लिए
दौलत और शोहरत कमाएं तेरे लिए
दरवाजे पर नज़र रखा
तेरे आने की नाम और निशान ना रहा
तनहाई में लिखे नगमे तेरे लिए
तन-मन की तस्वीर बनाए और
तुझको मालूम नहीं फाड़ फेंका मैंने
जी आर कवियूर
17 12 2021
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