Friday, December 17, 2021

बरसती रही

बरसती रही


तेरी आंखों की नदियां
बहती चली सागर की तले
लहरों में पाई मैंने
अंदर की आहट

देख मुझे
घबराहट तो लाती है
जालिम यह हवा
झूठी कहानी फैलाता चला

नजर बरसती रही
दिल तड़पता रहा
सीने की आग भटकता रहा
तन्हाई के आलम में

शाही कलम से बिखरता गया
तेरे नगमे लिखता गया
तू क्या जाने मेरी दिल की धड़कन
आंसू बनकर बरसता गया

जी आर  कवियूर

18 12 2021


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