तेरी याद की है
तेरी याद की है
कोई जुर्म नहीं की है
तनहाई में नींद नहीं आई
दिन में भी देखे सपने हजार
इतना ना दो सजा की
एक बार भी मुलाकात ना किया
सनम तुझे देखने के लिए
आंखें तरसता रहा और
प्यार की याद बनकर
दर-दर भटकता रहा
आजकल तो सपने में भी
आने से कतराते क्यों
तेरी याद की है
कोई जुर्म नहीं की है
जी आर कवियूर
26 01 2022
No comments:
Post a Comment