मगर सज़ा है।
तेरे बगैर कोई जन्नत है क्या
जीत और हर तेरे प्यार के नाम
जलता है जिया जलने दो
जालिम यह इश्क पागल कर दिया
दिल को आबाद कर दिया
बेखुदी में हमने खुद को खो दिया
तेरी चाहत में हमने जान गंवाई
हर दर्द को हमने अपनी भूल दिया
तेरे इश्क की राह में चलते चलते
सब कुछ खोकर हमने सिर्फ तुझे पा लिया
ये मोहब्बत का आलम है कुछ अज़ाब है
तेरे बिना जीना तोहफा, मगर सज़ा है।
रचना
जी आर कवियूर
12 04 2024
No comments:
Post a Comment