जीता हूं तेरे याद में
रचना
जी आर कवियूर
जीता हूं तेरे याद में
मौन खटकता है
बीते हुए दिनों की
आहटओ के पीछे
दबे पांव की खयाल
गली और चौबारे
फांद कर के
थक चुका हूं
एक झलक देखने की
उम्मीदों पर जीता हूं
कुबूल तो नहीं है
फिर भी भूल कर बैठा हूं
होठों पर गजल और जाम
आखिर यह धड़क कितने दिन
जीता हूं तेरे याद में
माउन खटकता है
बीते हुए दिनों की
आहट ओके पीछे
दबे पांव की खयाल
05 05 2023
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