Sunday, December 7, 2025

तेरी यादों का सफ़र ( गीत)


तेरी यादों का सफ़र ( गीत)

पहचानी सी तेरी एक झलक को देखने की चाह में
पलों की खिड़की से यादें फिर खुल जाती हैं
धीमे से उठे वो कहने की हसरतें
होंठों पर आकर सुर बन जाती हैं

पहले तो दिल में दबी थीं, जलती रहीं ख़ामोशी में
फिर धड़कन की लय में पिघलकर बह निकलीं
उँगलियों की थिरकन में ढलकर
गाने का रूप हथेलियों पर उतर आईं

कितने सपने अनकहे ही उड़ गए
आधी रात की हवा में बिखरते हुए
तेरी मुस्कान की हल्की सी चमक
दिन की धूप में भी दिल को छू जाती है

ओस की बूंदों में पलती ये पीर
बीते दिनों की धुन बनती जाती है
तुम पंछी बनकर दूर उड़ भी जाओ
पर राहों पर तुम्हारे कदमों की गूँज रहती है

मुस्कुराहटों के वो चंद लम्हे
नदी-सी बहकर फिर लौट आते हैं
जन्म बदल जाए, पर प्यार न मिटेगा
अगले जनम में भी तुम मेरे संग चलो
यही दुआ है—दिल आज भी सुर छेड़ता रहता है…

जी आर कवियुर 
07 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

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