Tuesday, December 9, 2025

नमकीन क्यों है (ग़ज़ल)

नमकीन क्यों है (ग़ज़ल)

सागर की लहरों में नमकीन क्यों है
आँखों के आँसुओं में नमकीन क्यों है (2)

राहों में बिछे फूल भी चुभने लगे हैं
ये दर्द की खुशबू भी नमकीन क्यों है (2)

पत्थर भी पिघलते हैं तेरे ज़िक्र से लेकिन
मेरे दिल की वीरानी नमकीन क्यों है (2)

चाँदनी रातों में भी तन्हाई बोल उठे
हर ख़्वाब की पेशानी नमकीन क्यों है (2)

रुसवाई की आदत तो बहुत पहले पड़ी थी
फिर भी हर बेगानी नमकीन क्यों है (2)

जी.आर. ये मानते हैं कि सच्चाई की तलाश में
ज़िंदगी मिटा कर रख दे—इसलिए सब नमकीन है (2)

जी आर कवियुर 
08 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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