घर की सजीव खुशबू चारों ओर फैल गई,
फूलों की नर्म छुअन मन में समा गई।
कोनों की शांति हृदय को शीतल करती है,
हवा में बहता गीत यादों को दूर ले जाता है।
चाय के प्याले की गर्मी हाथों में ठंडी पड़ गई,
भोजन की खुशबू नाक पर मुस्कान ला देती है।
पहाड़ों पर इंद्रधनुष के रंग बिखर गए,
माँ का प्यार धीरे-धीरे बारिश की तरह बहता है।
संध्या का समय दरवाज़े खोलकर प्रकाश फैलाता है,
परछाइयाँ घर में चुपचाप चलती हैं।
यादों की लय मन में उठती है,
यहाँ की सारी खुशियाँ हृदय को भर देती हैं।
जी आर कवियुर
11 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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