भिगी बारिश ने धीरे-धीरे धरती को चूमा
हरे पत्ते झकझक कर जाग उठे
अंधेरा आकाश कोमलता से टूट गया
बूँदें ऊपर से साँसों की तरह गिर रही थीं
शाम में चाय की गर्माहट धीरे-धीरे घुल गई
सड़क के किनारे की लैंप टिमटिमाई
बारिश में भीगी यादें हृदय को खोजती रहीं
एकांत बिना किसी आवाज़ के दूर हो गया
खिड़की पर बूँदों की ताल लगी
समय धीरे-धीरे ठहर गया
बारिश के साथ मन भी घुल गया
शांति एक मौन प्रार्थना की तरह फैल गई
जी आर कवियुर
15 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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