Thursday, December 11, 2025

वीणानाद

वीणानाद

वीणा की तंतुओं से हृदय की धड़कन उठती है
निर्जन रात में सपने आँसुओं की तरह बहते हैं
मछली जैसे विचार ठंडी हवा में उछलते हैं
नीचे की छज्जों में छुपे शब्‍द धीरे-धीरे गायब होते हैं

मृदुल संगीत धरती पर फैलता और फैलता है
अंगुली के सुरों के बीच पेड़ कराहते और रोते हैं
पक्षियों की आवाज़ शांति खोजते हुए डूब जाती है
नदी बहती रहती है, प्रेम के हृदय तक पहुँचती है

स्मृतियाँ चित्रों की तरह चमकती हैं, ताल पर नाचती हैं
बारिश के आगमन में अंगारे और गर्मी की चमक झिलमिलाती है
अंतिम सुर में हृदय पूरी तरह से संगीत को आत्मसात करता है
सब कुछ शांत धरती में छुपा है, संगीत प्रेम में बहता है

जी आर कवियुर 
10 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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