Saturday, December 6, 2025

राह में (ग़ज़ल)

राह में (ग़ज़ल)

आते जाते ज़िंदगी की राह में,
ज़िंदा दिलों का नाम है राह में(2)

हर कदम पर मिला हमें कोई पैग़ाम है राह में,
कभी ग़म, कभी मुस्कान का इम्तिहान है राह में(2)

दिल के अरमान लुटे मगर ये ग़ुमाँ रहा,
कहीं न कहीं तो इनायत का सलाम है राह में(2)

सफ़र की धूल में भी चमकते हैं कुछ निशाँ,
शायद किसी का छोड़ा हुआ इनाम है राह में(2)

जो ढूँढता रहा प्यार को सच्चे एहसास से,
वो जान ले कि यही असल मुक़ाम है राह में(2)

‘जी आर’ अब हर सफ़र में मिलता है सुकून,
तेरा ख़याल ही मेरा पयाम है राह में(2)

जी आर कवियुर 
22 10 2025
(कनाडा, टोरंटो)

No comments:

Post a Comment