अक्षरों में देखा, अपने सामने वरदान ईश्वर का,
हर मोड़ पर मिला साधु साया का।
तन्हा नहीं कोई इस राह में,
नदी भी सहारा बनती है आँसुओं का।
जंजीरें नहीं रोक पाईं इस दिल को,
मिल जाए दर्शन तुम्हारे प्रकाश का।
नाव ने किनारे देखे बहुत बार,
सुकून मिला बस तुम्हारी यादों का।
हर सुबह खुलती नई उम्मीदें नजरों का,
सपनों में बिखरे खुशियों के झरनों का।
‘जी आर’ ने खोजा ईश्वर को हर साँस में,
मकसद यही है जन्म–जन्मांतरों का।
जी आर कवियुर
05 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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