सूर्यकिरण धीरे-धीरे धरती को चूमते हैं
हरी कलियाँ उठती हैं, बिना आँसुओं के मुस्कुराती हैं
दूर तक फैले क्षितिज ने सुबह की रोशनी लायी
रेत में गर्मी फैलती है, कोमल आनंद की छाया में
दिन की तपिश हृदय को जगा देती है
वृक्ष अपने कंधे फैलाकर सीधे खड़े हैं
खेत हर्षित मुस्कानों से झूमते हैं
नदी हृदय की धड़कन को पूरा करते हुए बहती है
दूर-दूर तक के दृश्य सुख देते हैं
मिट्टी की छूअन ठंडी हवा में ठंडक देती है
प्रकृति का संगीत एक दिव्य अनुभव रचता है
सूर्यकिरण में जीवन नई सुबह की तरह चमकता है
जी आर कवियुर
15 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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