Monday, December 1, 2025

नशा का (ग़ज़ल)

नशा का (ग़ज़ल)

तेरी आँखों में मधुशाला भरी है नशा का,
तेरे होठों पे प्याला प्यार का नशा का।

तेरे केशों की छाया में रातें उतरती हैं,
हर पल में बसता है बहार का नशा का।

हवा भी तेरी लटों से महक उठी है,
उद्यान में बिखरा है इकरार का नशा का।

तेरे मौन अधरों से भी साज़ बजता है,
हर सुर में छिपा है इज़हार का नशा का।

मन चाहता है फिर तेरी महफ़िल में खो जाए,
फिर जी ले कोई बहार का नशा का।

कहता है ‘जी आर’ तुझसे नज़रें मिला कर,
मिल जाए मुझे भी दीदार का नशा का।

जी आर कवियुर 
01 12 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

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