Thursday, December 18, 2025

लफ़्ज़ कम लगता है (ग़ज़ल)

लफ़्ज़ कम लगता है (ग़ज़ल)


तेरी गजरा मुझे ग़ज़ल से भी बेहतर लगता है
तारीफ़ जितनी भी करूँ, लफ़्ज़ कम लगता है

तेरे होंठों की मुस्कान में बसी हर सदा
हर नज़र में तेरा असर कम लगता है

तेरी खामोशी भी बातों से आगे बढ़ जाती है
हर फिक्र में तेरा नाम कम लगता है

तेरी यादों की खुशबू इस दिल को भाती है
हर गीत में तेरा रंग कम लगता है

ख़ुदा ने जैसे तुझे सिर्फ़ मेरे लिए रचा हो
हर दुआ में तेरी मौजूदगी कम लगती है

जी आर कहते हैं, तेरे हुस्न की आगे
मकता भी लिखने को जी नहीं लगता है

जी आर कवियुर 
18 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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