तेरे लिए लिखने बैठा— हर लफ़्ज़ अधूरा रह गया,
दिल का हाल कहने निकला— मैं ख़ुद ही मजबूरा रह गया। (2)
तेरी यादों के दरियामें कोई किनारा न मिला,
लिखने बैठा हर जज़्बात— पर दिल बेचारा रह गया। (2)
कभी स्याही रूठ गई, कभी क़लम थम-सी गई,
इक तेरा नाम लिखते ही काग़ज़ बेक़सूरा रह गया। (2)
सोचा था तेरी बातों को नए अंदाज़ में ढालूँ,
पर हर मिसरा तेरे ख़यालों में बेहदूरा रह गया। (2)
शायद तू समझ न पाए मेरी कोशिशों की सच्चाई,
तेरे लिए जो लिखना था— वो सब दूरी-दूरा रह गया। (2)
कहते हैं जी आर भी तेरे इश्क़ में ऐसा खो गया,
जो कहना था उम्रभर— सब अधूरा रह गया। (2)
जी आर कवियुर
09 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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