Tuesday, December 23, 2025

“रातों की नमी” (ग़ज़ल)

“रातों की नमी” (ग़ज़ल)

आज भी तेरी अंगड़ाई की याद सताती हैं रातें
होठों की नमी ख्वाबों में खो जाती हैं रातें

तेरी हँसी की खनक अब भी गूँजती
सन्नाटों में भी तेरा गीत बज जाती हैं रातें

चाँदनी भी शरमा जाती
तारों की महफ़िल भी बुझ जाती हैं रातें

हर धड़कन में तेरा नाम उतर आता
हर साँस में तेरा जादू समेट आता हैं रातें

दिल की तन्हाई में तेरी परछाई बसती
हर याद ताज़ा हो जाती हैं रातें

जी आर की दुनिया में तेरी याद रहती
हर खुशी और ग़म में तेरी परछाई रहती हैं रातें

जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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