ख़ामख़ां आवाज़ करने में नहीं है चैन है
ख़ामोशियों में ही मन को चैन है
भीड़ में रहते हुए भी मन खाली है
मौन में बैठने पर मन को चैन है
बहुत कहकर भी कुछ बदल न सका
चुप रहने में ही अब मन को चैन है
जिन शब्दों ने मन को घायल किया
उनसे दूरी में ही मन को चैन है
दुनिया की चाहत थका देती है
कम चाहने में ही जीवन को चैन है
जी आर कहता है सीधी भाषा में
संतोष में ही इंसान को चैन है
जी आर कवियुर
16 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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