तेरी यादें मेरे साथ जीती हैं,
दिन-रात मुझे सताती हैं।
ख़ामोश लम्हों में तेरा ही ज़िक्र रहा,
तन्हा सी साँसें तुझसे ही बातें करती हैं।
नज़रें भले ही सामने कुछ कह न सकीं,
आँखों की नमी सब कुछ जताती हैं।
तेरे बिना जो कटे वो भी क्या उम्र हुई,
हर एक घड़ी तेरा ही नाम पुकारती हैं।
भुलाने की कोशिश में और करीब आ गए,
यादें भी जाने कैसी साज़िश रचाती हैं।
जी आर हर हाल में तेरे नाम की ग़ज़लें ही लिखता रहा,
तेरी यादें ही हैं जो आज भी उसे ज़िंदा रखती हैं।
जी आर कवियुर
21 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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