Monday, December 22, 2025

पर्दों के परे बसे प्रेम(वेदांत / सूफ़ी गीत)


पर्दों के परे बसे प्रेम
(वेदांत / सूफ़ी गीत)

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

छू न सकने वाली दूरी छोड़कर  
एक हृदय यात्रा जारी है  
फासले वहीं हैं  
प्रेम की साँसें फैल रही हैं  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

आँखों में न भरने वाला प्रेम  
नदी जैसी बहती खुशबू  
अनुपस्थिति का सच भी  
मीठा सुख बन गया  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

समीप नहीं लगने वाले लम्हे  
भीतर तक पास महसूस होते हैं  
विरह की अनुभूति  
साक्ष्य बनकर प्रकट होती है  
मृदुलता की आभा में  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

दुःख की पुकार नहीं है  
यादों में  
मधुरता की रौशनी है  
इंतजार में  
एक दिव्य नृत्य जागता है  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

मिलने की आवश्यकता नहीं  
जारी रहने का विश्वास पर्याप्त है  
अनंत रूप में बहता प्रेम  
समय को पार करता हुआ  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन

जी आर कवियुर 
22 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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