Tuesday, December 16, 2025

चाँदनी का जादू

चाँदनी का जादू 

ठंडी हवा धीरे-धीरे चली
धरती की खुशबू चारों ओर फैली
पत्तों की आँखे थककर झुक गईं
चाँदनी की कोमल रोशनी ने 
सितारों को अदृश्य कर दिया

हरे-भरे पहाड़ शांति से चमक रहे थे
तितलियाँ चारों ओर मंडरा रही थीं
रात की मधुर हवा धीरे-धीरे आई
कोमल पंख फड़फड़ाते हुए उड़ गए

यादें छायादार राह पर साथ चल रही थीं
छायाएँ धीरे-धीरे उनके साथ चल रही थीं
कोयल का मधुर गीत सुनाई दिया
स्नेह का छोटा सा स्पर्श प्रकाश दे गया

जी आर कवियुर 
15 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

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