तेरा ज़िक्र करके मुझे कितनी सुकून मिलती है
तेरी तारीफ़ जितनी भी करूँ, फिर भी कम लगती है
तेरी मुस्कान में छुपा है कोई जादू ऐसा
एक नज़र जो मिले तो हर शिकायत मिटती है
ख़ुदा ने जैसे तुझे सिर्फ़ मेरे लिए रचा हो
तेरे होने से ही हर दुआ मुकम्मल लगती है
तेरे लफ़्ज़ों की नरमी छू जाती है दिल को
खामोशी भी तेरे संग बातों में ढलती है
तेरे साथ बीते लम्हे यादों में चमकते हैं
तन्हाई की रात भी तब रौशन सी लगती है
जी आर कहते हैं, यही इश्क़ की सच्ची पहचान
नाम तेरा आए जहाँ, रूह मेरी खिलती है
जी आर कवियुर
18 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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