Tuesday, December 9, 2025

अब तुम्हारे रहे (ग़ज़ल)

अब तुम्हारे रहे (ग़ज़ल)

किसके भी उतने रहो, जीतना वो तुम्हारे रहे
इश्क़ में लम्हों का क़दर, हर घड़ी अब तुम्हारे रहे (2)

रात की तन्हाइयों में, जो भी दीपक तुम्हारे जले
कल वही यादों में बनकर, चुपके चुपके तुम्हारे रहे (2)

क़दमों की आहट से भी, रिश्तों की सूरत बदलती है
सच को पकड़ना सीखो, झूठ क्यों कर तुम्हारे रहे (2)

दर्द की छाया में अक्सर, हौसले भी थम जाते हैं
दिल संभालोगे तो क्या, दुख नज़र से तुम्हारे रहे (2)

जुर्मे-मोहब्बत में कोई, बेगुनाह नहीं ठहरता
जिसको भी चाह कर जीते, क़िस्मतें वो तुम्हारे रहे (2)

तुम नहीं चाहोगे कल, पछतावे की वो आग जले
सच अभी से बोल दो, चाहतें जो तुम्हारे रहे (2)

जी॰आर॰ कहता है बस, दिल की तिजारत न कीजिए
वरना जो सपने थे प्यारे, न कल को तुम्हारे रहे (2)

जी आर कवियुर 
09 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

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