Tuesday, December 2, 2025

गूंज ही गूंज है (ग़ज़ल)

गूंज ही गूंज है (ग़ज़ल)

दिल की ये धड़कन में तेरी गूंज ही गूंज है
हर साँस की राहों में तेरी गूंज ही गूंज है

रातों के सन्नाटे में तेरी याद का जादू
ख़ामोश लम्हों में भी तेरी गूंज ही गूंज है

तू दूर सही पर मेरे अहसास में मौजूद
हर मोड़ पे मंज़िल में तेरी गूंज ही गूंज है

माहौल बदल जाता है तेरे नाम के ज़िक्र से
जैसे किसी महफ़िल में तेरी गूंज ही गूंज है

दिल तो बड़े सलीके से संभाला था मैंने
पर टूटे हुए हिस्सों में तेरी गूंज ही गूंज है

जी.आर. ने लिखी जो भी ग़ज़ल तेरे असर में
हर शेर की रग-रग में तेरी गूंज ही गूंज है”

जी आर कवियुर 
02 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)

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