चट्टान पर
सोई हुई
ख़ामोशी
सूरज की छाया
छुई
आँखें
हवा की लहरें
धीरे
साँस लेती
नीचे
घास की छाया
ठंडक
समय
बहे बिना
ठहरा
स्मृति
कोमल
परत
दूर कहीं
लहरें
टूटतीं
अंदर
पीड़ा
ठहरती
रात्रि पक्षी
उड़कर
गया
बादलों की कतार
हटी
तारे
स्वप्न
मौन में
खुलते
शांति
वहीं
रहती
जी आर कवियुर
13 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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