एक स्वप्निल पंख पर मैं ऊँचाई पर उड़ता हूँ
पत्तों की सरसराहट सुनकर मन प्रफुल्लित होता है
सुबह की सुनहरी बूँदों से भरे रास्तों पर
बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ रहस्यमय दुनिया बन जाती हैं
ठंडी, फुसफुसाती हवा में सपने खिलते हैं
चाँदनी झील को छूती है, चमकती हुई
जलपतंग अपने पंख फड़फड़ाते, ताल में नाचते हैं
वे छोटे पक्षियों का दर्द एक साथ छिपाते हैं
सुनहरी संध्या में, सूरज की रौशनी धीरे-धीरे ढलती है
रातें शाम की खुशबू पर थिरकती हैं
इस दुनिया की हर सुंदरता हृदय को भर देती है
यह सारी भव्यता भगवान के हाथों से खिलती है
जी आर कवियुर
02 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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