दूर क्षणों में, मेरी आँखें तुझे ढूंढती रहीं
छायाएँ छुपी, रहस्यों में रुकी रहीं
खुला हुआ दिल, सपनों की तरह खिल उठा
संध्या की हवा में, एक याद झिलमिल उठा
मन के रास्तों में, पीड़ा धीरे बह गई
पंखों रहित आशाएँ उड़ चलीं, मौन में छा गईं
खामोशी में कानों में एक सदा जल उठी
काल के किनारे, यादें खो गईं
संध्या की रोशनी में, प्रेम फैल गया
आँखों में दिल का गीत गूंज गया
हर कोने में तेरा स्वर खोजा गया
अंतहीन दूरी, जहाँ सिर्फ प्रेम रहता है
जी आर कवियुर
09 12 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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