नि रे गा मा प ध नि सा’
सा’ नि ध प मा गा रे सा
मौन की परछाइयाँ भी दिल को छू बरसता है
चाँदनी में भीगा हर सपना रूबरू बरसता है (2)
रात की धुनों में छुपी कुछ अनसुनी कहानियाँ
किसी ख़्वाब का फिर से जागना यूँ ही क्यूँ बरसता है(2)
थरथराती हवा में तेरी मुस्कान की गर्मी
छू ले जैसे रूह को, हर लम्हा यूँ बरसता है(2)
बिन धूप की राहों में तेरी यादों की रोशनियाँ
तन्हा सफ़र में मेरी हर कदम पे क्यूँ बरसता है(2)
बादलों के हटते ही खुलता नीला आसमान
तेरी आँखों का सुकून मेरे अंदर ही बरसता है(2)
भोर की ओस-बूँदे भी क्या कम मोहब्बत हैं
एक-एक क़तरा जैसे नाम तेरा ही बरसता है(2)
दिल की दुनिया में "जी आर" भी चुप रहकर मुस्काए
जब भी तेरा एहसास गहराई से यूँ बरसता है(2)
जी आर कवियुर
06 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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