Saturday, December 6, 2025

तेरी मौजूदगी (ग़ज़ल)

तेरी मौजूदगी (ग़ज़ल)

तेरी ख़ामोशी मुझको बेहद बेचैन करती है,
तेरी आँखों की चमक भी बेचैन करती है।

तेरी सूरत मेरी तसवीर में ख़्वाब बुनती है,
दूर रहकर भी तू मुझको बेचैन करती है।

पंछी भी गाते हैं मगर दिल को सुकून नहीं,
बसंत की हवा तक मुझको बेचैन करती है।

फूल सारे शाख़ों से गिरकर बिखर गए,
बस तेरी याद ही मुझको बेचैन करती है।

लब अगर चुप रहें, क्या दिल भी छुप सकता है?
तेरी मौजूदगी हर पल बेचैन करती है।

मेरी ग़ज़लें भी तेरी आवाज़ को ढूँढें सनम,
"जी आर" को हर धुन अब बेचैन करती है।

जी आर कवियूर
16 - 03 -2025

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