Thursday, November 27, 2025

भूमि में खिलना”

भूमि में खिलना”

नई उपलब्धियाँ खिलती हैं धरती पर
हवा में फैलती है खुशबू का असर
खेतों में गूंजते हैं चिड़ियों के गीत
नदियाँ जागती हैं, बहती हैं तालमेल में

छोटे पौधे खिलते हैं सूरज की रोशनी में
हृदय भर जाता है खुशी की मिठास से
सपने उड़ते हैं कल के पंखों पर
रेत चमकती है रोज़मर्रा के दृश्य में

हाथ मिलते हैं, दोस्ती की राह खोजते
अधिकार पुकारते हैं सच्ची ज़िंदगी के लिए
समानता फैलती है हरियाली की तरह
दुनिया उठती है प्रेम और गर्व के साथ

जी आर कवियुर 
(27 11 2025)
(कनाडा, टोरंटो)

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