जब लगे खुद को दुनियासे अकेला
तब देख लेना आईने में झलके दुकेला(2)
रात की ख़ामोशी में भी लगे दिल अकेला
हर सन्नाटे में छुपा कोई अपना दुकेला(2)
तारों की चुप्पियों में भी गूँजता मन अकेला
हर पल में बसी यादें, कभी मीठा, कभी दुकेला(2)
सन्नाटे की गलियों में भी बहती अनकही बातें अकेला
हर धड़कन में छुपा है दर्द और सौगात दुकेला(2)
सपनों के परदे पर मुस्कान और तन्हाई अकेला
हर दाग़ में बसी यादों की परछाई दुकेला(2)
जी आर कहता है, ये दिल न जाने किसको चाहा अकेला
आँखों में बसे कई चेहरे, पर हर एक से रहा दुकेला(2)
जी आर कवियुर
26 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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