Friday, November 28, 2025

‘तेरी ख़ामोशी में (ग़ज़ल)

‘तेरी ख़ामोशी में (ग़ज़ल)

तेरी ख़ामोशी में भी कुछ बातें छुपी मिलती हैं,
धड़कनों की दस्तक से ये सूरत खुली मिलती हैं।

तेरे साये की नरमी अब भी साथ मेरे चलती है,
रातें तेरी यादों से ही महकी हुई मिलती हैं।

तेरे जाने की आहट ने मौसम को बदल डाला,
अब हवाओं में तेरी खुशबू ही घुली मिलती हैं।

दिल की गलियों में तेरे कदमों की रौनक है,
तेरे बिन ये धड़कनें भी कितनी अधूरी मिलती हैं।

जो रिश्ते दूर रहकर भी पास ही लगते हैं,
ऐसी मोहब्बतें हर दिल में कहाँ कभी मिलती हैं।

तेरी आँखों की चमक से ही शामें सजती थीं,
तेरे बिन ये रातें भी कितनी फीकी-सी मिलती हैं।

हर लम्हा तेरी चाहत को ही आईना मानता हूँ,
तेरे बिन ये सांसें भी जैसे बंद पड़ी मिलती हैं।

जी आर की हर ग़ज़ल में तेरी कहानी बसती है,
लफ़्ज़ लिखूँ तो तेरी यादें ही क़लम में उतरती हैं।’


जी आर कवियुर 
27 11 2025 
(कनाडा , टोरंटो)

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