नवम्बर की हवा में कोई सदा बाकी है,
वो भीगी सी दुआ में तेरा पता बाकी है(2)
महेकती ज़मीन पे ख़ामोशियाँ उतरती हैं,
तेरे जाने के बाद भी एक अदा बाकी है(2)
हर सवेरे की धूप में तेरी झलक मिलती,
मेरे दिल के दरीचों में रोशनी बाकी है(2)
मिट गए हैं निशाँ सब बारिशों के साथ मगर,
हर बूँद में तेरे आने की सदा बाकी है(2)
न जाने क्यों हर ग़म में तेरा नाम आता,
जैसे साँसों में कोई तर्ज़-ए-वफ़ा बाकी है(2)
जी. आर. कहता है — यादों में वो मौसम अब भी,
नवम्बर की तरह दिल में नमी बाकी है(2)
जी आर कवियुर
02 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)
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