ख़ामोशियों ने सँवारा यादों का ये सफ़र,
धड़कन ने धीमे-धीमे लिखा दिल का ये सफ़र(2)
रातों की रेत पर बिखरे पांवों के निशाँ,
चुपके से शाम ने ढोया ख़्वाबों का ये सफ़र(2)
तेरी हवा ने जहाँ-तहाँ रूह को छुआ,
महका सा छोड़ गई फिर जज़्बों का ये सफ़र(2)
दिल की कहानी कोई समझे भी तो कैसे,
खुद से छुपा के चला हूँ तन्हा-सा ये सफ़र(2)
तेरी सदा की रौ में बहती रही रगें मेरी,
सुनता रहा वही दिल, धड़कनों का ये सफ़र(2)
जी आर के क़दम यूँ ही राहों में मुश्किलों से,
कुछ हँसी, कुछ दर्द लिए कटता रहा ये सफ़र(2)
जी आर कवियुर
25 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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