भारत, भारत, मेरी मातृभूमि,
भलाई के पथ पर फैली हुई ज्योति। (2)
नदियाँ गाती हैं मधुर गीत,
पहाड़ संजोते हैं अपनी महिमा।
भोर के रंगों में आशा जगती है,
नई पीढ़ी में वीरता खिलती है। (2)
भारत, भारत, मेरी मातृभूमि,
भलाई के पथ पर फैली हुई ज्योति।
किसान और सैनिक साथ खड़े हैं,
एक धरती जहाँ साहस कभी नहीं ढलता।
सत्य और धर्म यहाँ कायम हैं,
प्रेम के कदम फैलते हैं पूरे देश में। (2)
भारत, भारत, मेरी मातृभूमि,
भलाई के पथ पर फैली हुई ज्योति।
विविधता में एकता का दीप जलता है,
विजय की गाथा, जिसे भरत ने संवारा। (2)
भारत, भारत, मेरी मातृभूमि,
भलाई के पथ पर फैली हुई ज्योति।
जी आर कवियुर
08 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)
No comments:
Post a Comment