Saturday, November 8, 2025

“मेपल का गीत”

“मेपल का गीत”

जब मेपल की पत्तियाँ लाल हो जाती हैं,
खामोश राहें भी गुनगुनाती हैं।
हवा के संग उड़ते हैं कुछ अफ़साने,
दिल में जागते हैं नए तराने।

ठंडी उँगलियाँ छूतीं हैं यादों को,
बर्फ़ की चाह फैलती है बादलों में।
धूपहीन रातें बढ़ती हैं चुपके,
मिट्टी की ख़ुशबू बुलाती है घर की ओर।

मेदम महीने में कोन्ना खिले पीले,
विशु की भोर चमके नए उजाले।
पंछियों की तान जगा दे मन,
प्रेम ही रहे सदा जीवन में अमन।

जी आर कवियुर 
05 11 2025
(कनाडा, टोरंटो)


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