तेरी नैनों की झलक से, मैं होश खो बैठा हूँ,
क्या कहूँ इतना कि जैसे जन्नत में जा बैठा हूँ(2)
रात की ठंडी हवा में तेरी खुशबू बसी मिलती है,
दिल के वीरान सफ़े पर अब इक रौशन लफ़्ज़ लिखा बैठा हूँ(2)
तेरी तन्हा सी हँसी ने दिल के अंदर दीप जला डाले,
सोच के हर मोड़ पे तेरे नाम का चिराग़ जला बैठा हूँ(2)
जब से तेरी राहों में मेरी मंज़िलें उतर आई हैं,
हर कदम तेरे क़दमों की आहट में ही ढल बैठा हूँ(2)
तेरी बातों में लिपटी मासूम सी खामोशी ने,
दिल के अंदर छुपे राज भी आज खुला बैठा हूँ(2)
कविता लिखते हैं जी आर दिल की धड़कनों की तर्ज़ पर,
तेरे इश्क़ की दस्तक सुनकर खुद ही ग़ज़ल बना बैठा हूँ(2)
जी आर कवियुर
22 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)
No comments:
Post a Comment