Friday, November 14, 2025

ग़ज़ल — “मुस्कानों की रवानी है”

ग़ज़ल — “मुस्कानों की रवानी है”

हर लम्हा तेरी हंसी में एक दिलकश कहानी है,
सच कहूँ तो मुस्कुराहट ही ज़िंदगी की रवानी है(2)

नज़र में जो चमक उतरी, वो ख्वाबों की निशानी है,
राहों पर गूँजती खुशबू भी तेरी मेहरबानी है(2)

नर्म दिलों को छू ले जो, वो जज़्बात की पानी है,
लफ़्ज़ों में जो भरो सच्चाई, वही असली ज़िम्मेदारी है(2)

चेहरों पर खिलते जज़्बे में मोहब्बत की रवानी है,
बादल हटते ही नीला सा एक खुला आसमानी है(2)

यादों में जो मीठे पल हैं, हर एक एक निशानी है,
ज़िंदगी यूँ गुनगुनाती है— मानो कोई पुरानी कहानी है(2)

कहते हैं “जी आर” कि मुस्कान ही मेरी पहचान रही,
जिस दिल में खुशियाँ बोईं, वहीं मेरी दास्तान रही है(2)

जी आर कवियुर 
14 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)

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