ये इश्क़ भी क्या चीज़ है, हर बार समझाता हूँ,
मैं तुमको भुलाने के लिए कितना सँभल - सँभल जाता हूँ(2)
तेरी ही तरफ़ चल पड़ती हैं राहें चाहे जहाँ जाऊँ,
हर मोड़ पे तेरी यादों का इक मेला-सा सज जाता हूँ(2)
दिल में दबी ख्वाहिशें तेरी, पल-पल सरगर्मी लाती हैं,
सूने कमरों में तेरी धुन बनकर हलचल मच जाता हूँ.(2)
रातों की चादर जब ढलती है, तन्हाई गुनगुनाती है,
तेरे लहजे की परछाईं बन मैं खुद में ही खो जाता हूँ(2)
तनहाई में तेरी आवाज़ें फिर दिल को भरमाती हैं,
ख़ामोशी के सायों में मैं ख़ुद को ढूँढता-मिट जाता हूँ(2)
जी आर से पूछो क्या खोया, क्या पाया इस राह-ए-इश्क़ में,
तेरे बाद भी हर पल तेरा ही नाम वो दोहराता हूँ(2)
जी आर कवियुर
27 11 2025
(कनाडा , टोरंटो)
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